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शनि देव : ज्योतिष शास्त्र में शनि को वृहत ग्रह माना जाता है जो लोग अपने कर्मों के हिसाब से पहचानते हैं। शनि को कर्मफल द्रष्टा भी कहा जाता है। शनि देव अपनी स्थिति के अनुसार अच्छे और बुरे दोनों परिणाम देते हैं। शनि की कृपा हो तो व्यक्ति रंक से राजा बन जाता है। वहीं शनि की अशुभ दृष्टि हो तो व्यक्ति को हर काम में रुकावट आती है। शनि के कुछ कुछ उपाय राशियों को जरूर करने चाहिए। ज़ोंबी से शनि कवच स्त्रोत का पाठ कुछ राशियों को अवश्य ही देना चाहिए।
इन लोगों को शनि कवच स्त्रोत का पाठ चाहिए
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन जातकों पर शनि देव की स्थिति असफल होती है उनका जीवन में दायित्व बनता है। ऐसे लोग हमेशा परेशान रहते हैं। इस समय मकर, कुंभ और मीन राशि के जातकों पर शनि की साढ़े साती चल रही है। मीन राशि के जातकों पर प्रथम चरण, कुंभ राशि के जातकों पर दूसरा चरण और मकर राशि के जातकों पर साढ़े साती का अंतिम चरण चल रहा है। वहीं, कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर इस समय शनि की ढैय्या चल रही है।
शनि के सितारों से बचने के लिए इन 5 राशियों के जातकों को शनि देव की विशेष पूजा- अर्चन करना चाहिए। शनि देव की कृपा पाने के लिए इन राशियों के जातकों को हर दिन शनि की पूजा करने के साथ शनि कवच का पाठ करना चाहिए। शनि कवच के पाठ से साढ़े साती का प्रभाव कम होता है। साथ ही जीवन में सभी दुखों का नाश होता है।
शनि कवच पाठ
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप्छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासारो धनेश्वरमान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तम।।
कवचं देवतासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।
ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
आंखे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्रता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।
नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममासंतक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।
पदौ मंन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोस्पि वा।
कलत्रस्थो गतोवास्पि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।
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