वट सावित्री व्रत 2023 अमावस्या और पूर्णिमा में दो बार, जानिए महत्व और कारण
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वट सावित्री व्रत 2023: पति की लंबी उम्र और अखंड स्वरभक्ति के लिए सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत हैं। यह ज्येष्ठ के महीने में करने वाले प्रमुख व्रतों में एक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज्येष्ठ माह में 15 दिन के अनुपात में दो बार वट सावित्री का व्रत रखा जाता है।

बता दें कि वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि को धारण करने का विधान है। भारत के कई क्षेत्रों में ज्येष्ठ अमावस्या तो कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत हैं। लेकिन दोनों विपरीत पूजा-पाठ करने का विधान, कथा, नियम और महत्व एक समान होते हैं।

वट सावित्री व्रत (अमावस्या तिथि)

धर्म रीलों

ज्येष्ठ माह में 19 मई 2023 के दिन सुहागिनों में वट सावित्री का व्रत रखना बरगद व्रत की पूजा की और पति की लंबी आयु की कामना की। ज्येष्ठ अमावस्या में वट सावित्री के व्रत को विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में वोग रखते हैं।

वट सावित्री व्रत (पूर्णिमा तिथि)

अब वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन 4 जून को रखेंगी। ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि में वट सावित्री का व्रत मुख्यत: महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत सहित कई क्षेत्रों में रखा जाता है।

15 दिन के मानकों में दो बार क्यों रखा जाता है?

ज्येष्ठ अमावस्या और ज्येष्ठ पूर्णिमा में वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। लेकिन इसके पीछे किस कारण से कि एक ही महीने में 15 दिन के मानकों में दो बार एक ही व्रत रखा जाता है। जबकि दोनों पर्व में पूजा, विधि-विधान, कथा और महत्व आदि समान है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार इस व्रत को ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को करने के विधान के बारे में बताया गया है। वहीं भारत में इसे लोग अमावस्या और पूर्णिमा दोनों वर्ण में दर्शाते हैं। जबकि दोनों में केवल एक ही अंतर है और बाकी सभी समानताएं हैं।

यह मुख्य कारण है

वट सावित्री व्रत की कथा के अनुसार सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से तीन वरदान मांगे थे। सबसे आखिरी व तीसरे वरदान में सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों की माता होने का वरदान मांगा था। तब अंततः यमराज को सत्यवाण के प्राण लौटाए गए। कहा जाता है कि जिस दिन यमराज ने सत्यवाण के प्राण लौटाए थे वह ज्येष्ठ अमावस्या का दिन था। इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या पर महिलाएं वट सावित्री का वृष हैं।

वहीं इसके 15 दिन बाद ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि को महिलाएं वट सावित्री पूर्णिमा का वृष राशि होती हैं। इसे वट पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस व्रत को पति की प्राण रक्षा, लंबी आयु और सुखमय अनुबन्ध जीवन के लिए रखा जाता है। आपके घर-परिवार में अमावस्या या पूर्णिमा जिस दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है, उसी के अनुसार आप ये व्रत रख सकते हैं।

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अस्वीकरण: यहां बताई गई जानकारी सिर्फ संदेशों और जानकारियों पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी विशेषज्ञ की जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित सलाह लें।

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Umesh Solanki

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