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रंभा अप्सरा: हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार अप्सराएं बेहद खूबसूरत और आकर्षक थीं। ये उल्लिखित हिंदू पौराणिक कथाओं से मिलता है। ग्रंथों में मुख्य रूप से दो तरह की अप्सराओं का उल्लेख मिलता है- दैविक अप्सरा और लौकिक अप्सरा। दैविक अप्सराओं का वास देवलोक में बताया गया है जबकि लौकिक अप्सराएं, सामान्य प्राणियों की किस्में किसी शाप आदि के कारण पृथ्वी पर रहती हैं।
शास्त्रों के अनुसार दैविक अप्सराओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध लोगों में से एक रंभा नाम की अप्सरा है, जिन्हें ‘अद्वितीय’ समझा जाता है। ये सौंदर्य का प्रतीक स्थापित किया गया है। आइए जानते हैं रंभा अप्सरा कौन थी, कैसे हुई इनकी उत्पत्ति और रंभा अप्सरा से जुड़ी रोचक बातें।
रंभा कौन था ? (कौन हैं रंभा अप्सरा?)
पुराणों के अनुसार रंभा की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। ये 11 दैविक अप्सराएं कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रमलोचा, अनुमलोचा, घृतची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा के प्रमुख निर्धारित किए गए थे। अक्षय ने रंभा को अपने राजसभा में स्थान दिया था। रामायण काल में यक्षराज कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी के रूप में मिलता है।
रंभा ने रावण को दिया था श्राप (रंभा अप्सरा रोचक तथ्य)
रम्भा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी। एक कथा के अनुसार रावण एक बार कुबेर की महल के पास से गुजर रहा था, तभी उसे घोर अंधेरे में चांद की तरह फ्लैशिंग हुई दिखाई दी। उसका यौवन देखकर रावण संयम खो गया। उसने बलपूर्वक रंभा को पाने की कोशिश की। रंभा ने रावण के कहा कि वह उनका पुत्रवधू है और उनका ये व्यवहार शोभा नहीं देता लेकिन रावण ने तर्क को स्वीकार नहीं किया। रंभा ने रावण को श्राप दिया कि अगर वह किसी भी महिला को अपनी मर्जी के विरूध छूता है, तो उसके दसवें सर उसी वक्त जहर उगल देंगे।
रंभा तीज का महत्व
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तीज के नाम से जाना जाता है। इस दिन रंभा अप्सरा का स्मरण कर शिव-पार्वती और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि स्वरभक्ति और सौंदर्य प्राप्त होता है।
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