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बुद्ध अमृतवाणी, महात्मा बुद्ध के त्याग और तपस्या की कहानी: बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध ने एक दिन अचानक घर-गृहस्थी का त्याग कर दिया। अजनबी और परिवार मोह-माया का बलिदान कर वे जंगल की ओर चले गए।
बुद्ध ने बोधि वृक्ष के करीब छह साल तक तप किया और इस तरह उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने लोगों के बीच अहिंसा, प्रेम, शांति और त्याग का संदेश देकर समाज में असफल कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
कहा जाता है कि गौतम बुद्ध का जन्म ऐसे काल में हुआ जब समाज में अत्याचार, भेद-भाव, अनाचार, अंधविश्वास और रूढ़ियां अपना जड़ जाम रही थी। तब इन कुरीतियों को दूर करने के लिए बुद्ध जैसे महापुरुष का जन्म हुआ। बुद्ध ही वह व्यक्ति थे, जो इन कुरीतियों के बेरोज़गारों से मुक्त लेखाकार थे।
महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम राजकुमार सिद्धार्थ था। कहा जाता है कि वे बचपन से ही अन्य बच्चों से काफी अलग थे। वह बचपन में भी नटखट और चंचल होने के बजाय शांत व गंभीर स्वभाव के थे और बहुत कम बोलते थे। उन्हें ज्यादातर समय एकांत में बैठने और वातावरण अच्छा लगता था।
जैसे गौतम बुद्ध बड़े होने लगे, उनका यह स्वभाव और भी जटिल हो गया। इस तरह से धीरे-धीरे सासंरिक सुखों के प्रति उनकी रुचि भी खत्म होने लगी। उनका विवाह कर दिया और कुछ समय बाद एक बेटा भी हुआ। लेकिन बुद्ध का वैराग्य भाव बढ़ता ही चला गया। इस तरह एक दिन बुद्ध ने अंग्रेजी गृह त्याग कर दिया।
बुद्ध ने छोड़ा घर क्यों?
अपरिग्रह होने पर कुछ लोग क्षमता के अनुसार अपनी संपत्ति छोड़ देते हैं। क्योंकि वे आत्मा से जुड़े हुए हैं। परिग्रह जीव के साथ घटिया होने के साथ आत्मा के साथ नहीं हो सकता है और आध्यात्मिक आनंद नहीं मिलता है। कुछ लोगों का लक्ष्य जीवन में केवल ज्ञान प्राप्त करना होता है, तो ऐसे लोग अपरिग्रह को अपनाते हैं। स्पिरिट के अलावा अन्य किसी वस्तु से देखने की दृष्टि नहीं रखते। ना घर, ना परिवार, ना संपत्ति और ना कोई अन्य वस्तु. बुद्ध के भी गृह त्याग का यही कारण था। वे केवल अपनी आत्मा से प्राप्त करना चाहते थे।
महात्मा बुद्ध की तपस्या
बुद्ध के मन में कई प्रश्न थे और इन चिन्हित उत्तर ढूढ़ने के लिए उन्होंने तपस्या शुरू की। लेकिन सालों तक तपस्या के बाद भी उन्हें उनका जवाब नहीं मिला। तब वे एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए और ठान लिया कि सत्य को जाने बिना यहां से नहीं उठेंगे। इसी पेड़ को अब बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है। इस पेड़ के नीचे ही बुद्ध को पूर्ण व दिव्य ज्ञान की अनुभूति हुई। इस तरह ज्ञान और सत्य की खोज में बुद्ध को छह साल लग गए और 35 साल की उम्र में वे सिद्धार्थ गौतम से महात्मा गौतम बुद्ध बन गए।
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