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अधिक मास 2023: इस साल सावन में अधिकमास लगने के कारण सावन 59 दिन का अर्थात दो महीने का होगा। हर तीन साल में एक साल का एक माह अतिरिक्त होता है, जिसे अधिकमास कहा जाता है। अधिकमास समय की स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए लगता है।

अधिकमास क्या है

अरेंज कैलेंडर में तो हर साल 12 महीने होते हैं। लेकिन पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह होता है, जिसे अधिकमास या फिर प्रमुख मास भी कहा जाता है। अधिकमास में पूजा-पाठ, व्रत और साधना का महत्व काफी बढ़ जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर तीन साल में एक बार और कब ऐसा लगता है। जानते हैं इसके बारे में.

जब लगता है अधिकमास

पंचांग या हिंदू कैलेंडर सूर्य और चंद्र वर्ष की गणना से चलता है। अधिकमास चंद्र साल का अतिरिक्त भाग है, जो 32 महीने, 16 दिन और 8 घंटे के इंटरेस्ट से बना है। सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच समान अंतर को पाटने या संतुलन बनाने के लिए अधिक मास लगता है।

वहीं भारतीय गणना पद्धति के अनुसार, सूर्य वर्ष में 365 दिन होते हैं और चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं। इस तरह एक वर्ष में चन्द्रमा और सूर्य में 11 दिन का अंतर होता है और तीन वर्ष में यह अंतर 33 दिन का होता है। यही 33 दिन बाद एक अतिरिक्त माह बन गया। यही अतिरिक्त 33 दिन किसी माह में शामिल होता है, जिसका नाम दिया गया है। ऐसा करने से व्रत-त्योहारों की तिथि उपयुक्त रहती है और साथ ही अधिकमास के कारण काल ​​गणना के रूप में बनाए रखने में मदद मिलती है।

अधिकमास को मलमास और पूर्णिमा मास भी कहा जाता है। इस साल अधिक सावन माह में बनी है, जिसका कारण इस बार है वंहा दो महीने का होगा. अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई 2023 से हो रही है और 16 अगस्त 2023 को यह समाप्त हो जाएगा।

अधिक मास का पौराणिक आधार क्या है?

अधिकमास से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और अपनी अमृता का श्रृंगार किया। लेकिन अमरता का पुष्पाहार अवशेष ब्रह्मा जी ने उन्हें कोई और पुष्पाभास कहा।

तब हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से कहा था कि, तुम ऐसे आभूषण दे, जिससे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर उसे मार सके और सभी 12 वर्षों में भी उसकी मृत्यु हो सके। उनकी मृत्यु ना दिन का समय और ना रात को हुई। वह ना ही किसी अस्त्र से मरे और ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जाए और ना ही घर से बाहर। ब्रह्मा जी ने उन्हें ऐसा ही आशीर्वाद दिया।

लेकिन इस समृद्धि के लिए हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर और भगवान के समान अपमानित किया गया। तब भगवान विष्णु अधिकमास में नरसिंह अवतार (आधा पुरुष और शेष सिंह) के रूप में अवतरित हुए और शाम के समय डेहरी के नीचे अपने शिष्य से हिरण्यकश्यप का सेनापति बनकर उन्हें मृत्यु के द्वार भेज दिया।

अधिकमास का महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों (जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी) को मिलाकर बनाया गया है। अधिकमास में ही वह समय होता है, जिसमें धार्मिक कार्यकर्ताओं के साथ चिंतन-मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर में समाहित इन पंचमहाभूतों का संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इसलिए अधिकमास के दौरान कार्य से व्यक्ति को हर तीन साल में परम निर्मलता प्राप्त कर नई मजबूती से भर दिया जाता है।

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अस्वीकरण: यहां संस्थागत सूचनाएं सिर्फ और सिर्फ दस्तावेजों पर आधारित हैं। यहां यह जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह के सिद्धांत, जानकारी की पुष्टि नहीं होती है। किसी भी जानकारी या सिद्धांत को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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Umesh Solanki

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