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मुलचेरा महसूल अंतर्गत लगाम के पटवारी द्वारा शांतिग्राम के सर्वे क्रम 185 पर कापूस लगी खेत को धान उठित दिखाकर आदित्यनाथ जोडुनाथ घरामी को लाभ पहुंचाया हैं।आदित्यनाथ जोडूनाथ घरामी के द्वारा अपने 3 एकर में धान पिक और 2 एकड़ में कापुस पिछले 15 सालंसे करते आ रहे हैं। परंतु पटवारी के साथ मधूरसंबंध के नाते पटवारी आदित्यनाथ घरामी को लाभ पहुंचाने के लिए पूरे 5 एकड़ के उठित धान दिखाकर 7/12 दिए गए। आदित्यनाथ घरामी के द्वारा शासन को गुमराह कर बाकायदा जीडीसीसी बैंक लगाम सखा से 5 एकड़ के नाम कृषि कर्ज भी ले लिया गया।केवल यही एक कारनामा नही लगाम और लगाम चेक के पटवारी द्वारा पिछले कई सालो से कपास लगी खेतनको धान उठित के बोगस 7/12 का खेल और शासन का नुकसान कराए जाने का भ्रष्ट खेल उच्च अधिकारियों के छत्रछाया में बेरोकटोक बदस्तूर सुरु हैं। पड़ित खेत हो या कपास लगी खेत हो।पटवारी के द्वारा कुछ लाभ के लिए शासन के साथ धोखाधड़ी खुलेआम कर रहे हैं।और भ्रष्ट किसान दलाल को लाभ पहुंचा रहे हैं।कपास खेत को धान उठिट 7/12 पर दलाल शासकीय सोसाइटी में धान देकर शासन का नुकसान कर नुकसान पे नुकसान करे जाने का सिलसिला लगातार अपनी जड़ मजबूत कर रही हैं।और महसूल के अधिकारी मौन धारण कर पटवारी का भ्रष्ट मनोबल को बढ़ावा दे रही हैं। कब तक और पटवारी के द्वारा शासन का नुकसान करता रहेगा? कब जांच होगी? क्या जीडीसी बैंक के कर्मचारी भी इस तरह के भ्रष्ट काम के लिए जिम्मेदार नहीं हैं? क्या बारंमबार खबर के बाद भी अधिकारियों कुंभकर्ण की नींद क्यों नही खुलती? जीडीसीसी बैंक द्वारा गरीब किसान को कोई न कोई कमियां गिनाकर भारी भरकम कर्ज देने से इंकार करते हैं।कमीसन की मांग करते हैं।कई कई महीने घुमाया जाता हैं।गरीब किसान को नोडु के नाम पर मुलचेरा और आस्ति के चक्कर लगाया जाता हैं।ना बस की सुविधा हैं।ना गरीब किसान के पास जाने का खुदका सुविधा हैं। लेकिन बैंक किसान को नोड़ू के नाम पर मानसिक तकलीफ देने के लिए हर एक हथखंडा करते दिखा जा सकता हैं।जिनके साथ बैंक कर्मचारी का मधुर संबंध हैं।उन्हें बीना कमियां दिखाए कर्ज मंजूर करा दी जाती हैं।गरीब के 7/12 पर कई नाम होने पर उन्हें सभी को बैंक में हाजिर रहने को कहा जाता हैं।परंतु मधुर संबंध के लिए कोई नियम लागू नहीं होती ।आखिर भ्रष्ट किसान को कैसे भारी कर्ज झूठा 7/12 पर दिया जा रहा हैं? जांच का विषय हैं?

गदचिरोली से ज्ञानेंद्र विश्वास

संजय रामटेके ( सह संपादक )

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