Spread the love

गड़चिरोली जिले में स्थित एटापल्ली सूरजगढ़ लोह प्रकल्प और कोनसुरी प्लांट के लिए जिन सिक्योरिटी एजेंसी को ठेका दिया गया उनके द्वारा सड़क मार्ग पर बसे गरीब गांव के पड़े लिखे बेरोजगार को कबतक के लिए सिक्योरिटी गार्ड बनाकर डंडा पकड़ा कर रोजगार देगी? आखिर खराब सड़क मार्ग के कारण ही गार्ड भर्ती की गई या आगे सड़क मार्ग दुरस्त होने के बाद भिनरोजगार देगी? सभी जानते हैं सिक्योरिटी एजेंसी कुछ महीने कुछ साल तक ठेके पर जुड़ते हैं। क्या आपको नहीं लगता त्रिवेणी और लॉयड्स मैटल्स के द्वारा बेरोजगारों को रोजगार के नाम पर महाठगी नही कर रहे हैं?

पिछले तकरीबन 2 साल बीत जाने के बाद भी सिक्योरिटी एजेंसी के द्वारा एक भीं स्थाई गरीब बेरोजगार युवाओं जो सिक्योरिटी गार्ड के हाजरी पर आजतक उनको वेतन स्लीप नही दी गई? रात हो दिन हो काम में डंडा पकड़कर धूप हो बारिशहो ,जहरीले धूल भरी आंधी में भी 12 से 14 घंटे काम कर रहे हैं।उनके स्वस्थ के लिए जहरीले धूल कितना घातक साबित हो रही हैं? इनके इलाज मेडिकल सुविधाओं के लिए आखिर क्या बंदोबस्त किया एजेंसी ने? क्यू उनसे 12 से 14 घंटे हमाल की तरह काम करवा रहे हैं? क्या एजेंसी 12 घंटे से 14 घंटे के काम के बदले उनको उतनी वेतन दे रहे हैं? सभी जानते हैं 365 दिन कोई भी सिक्योरिटी एजेंसी इन बेरोजगारों के हाजरी नही दिखाएंगे? कारण एक ही 365 दिन की हाजरी मतलब परमानेंट ना करना? क्या एजेंसी बता सकता हैं? इन बेरोजगारों को कंपनी में परमानेंट करेंगे? कभी नही करेंगे।। केवल और केवल स्थाई जनता को खुश करने के लिए गांव गांव में 2 से 4 बच्चो को सिक्योरिटी के गार्ड की भर्ती कर खुश रखने का एक शातिर ठग बाजी का खेल हैं। जिससे आम जनता ना भड़के गांव के जनता को रोजगार के नाम पर राहत दिखाने की एक ठगी वाला कोसिस। आखिर 2 साल बीत जाने के बाद भी इन्हे वेतन स्लीप क्यों नही दिया गया? क्यों ठगा जा रहा हैं।इन बच्चो को? क्यों कंपनी ड्राईवर से लेकर बड़े अधिकारी पर राज्य के ज्यादा भर्ती किए? और हमाल के काम पर स्थाई को रखकर स्थाई के साथ ठगी किया जा रहा हैं? एजेंसी गार्ड के ड्यूटी की शुरुवात के दिन से लेकर अबतक के वेतन स्लीप बच्चो को दे और उनके उज्जवल भविष्य के साथ खेलना जल्द बंद करे। 70 सालो से नक्सल प्रभावित के कारण जिला को ठगा गया। आदिवासी बहुल जिला के नाम पर ठगा गया।।अब रोजगार के नाम हमाल के काम देकर ठगा जा रहा हैं।

गड़चिरोली से ज्ञानेंद्र विश्वास

संजय रामटेके ( सह संपादक )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *