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प्रेमानन्द जी महाराज: प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन के प्रसिद्ध संतों में से एक हैं। प्रेमानन्द जी महाराज राधारानी के परम भक्त हैं। महाराज जी ने अध्यात्म का मार्ग चुना और श्रीकृष्ण हरे गोविंद मुरारी का जाप करने लगे।

प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन और सत्संग-भजन सुनने दूर-दूर से लोग आते हैं। इसी तरह एक सत्संग के दौरान एक भक्त ने महाराज जी से प्रश्न किया कि, भगवान क्या प्रमाण हैं? प्रेमानंद जी महाराज ने बड़ी ही शालीता, सहजता और सरलता से भक्त के इस प्रश्न का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा शांत की। अगर आपके मन में भी ऐसा सवाल है कि, भगवान कहां हैं और भगवान कहां हैं या नहीं, तो आपको प्रेमानंद महाराज जी की ये बातें जरूर जाननी चाहिए।

प्रश्न (भक्त): भगवान क्या प्रमाण हैं?

उत्तर (प्रेमानंद जी महाराज): बाप के होने का प्रमाण कौन दे सकता है, कहीं जाने से भी नहीं मिल सकता। इसे बहुत सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। हमारे असली पिता कौन हैं केवल मां नामित हैं और मेरा परिचय केवल मां दे सकता है। भगवान इसका प्रमाण सद्गुरु देव रूपी माँ से हैं। यह विषय पुरुष संसारे मनुष्य या प्राकृतिक भोगों को भोगने वाला नहीं जान सकता।

कृति अर्थात प्रकृति है तो कोई रचनाकार भी है, पुत्र है तो उसका बाप है, सृष्टि है तो स्वामी है। यदि शस्त्रास्त्र प्रमाण चाहिए तो साधना करो। ये तर्क साधना से समझ में नहीं आता है। अधर्म आचरण का त्याग करो, पवित्राहार करो और जो हम मोक्ष का नाम लेते हैं, उसका त्याग करो। इससे पहले प्रश्न में कोई समाधान नहीं होगा। ये साधना से नहीं बल्कि कृपा से जागृति होगी। लेकिन तुम स्वाद लेना उचित हो इंटरनेट.

अगर नीम की गर्लफ्रेंड के मुख में हो और शरीर में पित्त बढ़ जाए और मिश्री पंख खिला जाए तो क्या आपकी दोस्त दोस्त है? लेकिन मिश्री शुद्ध कर लंबे समय तक पाए तो वही मिश्री तीर्थ मित्र मित्र। हम भी जब बचपन में चले थे तो आप जैसे ही थे, हम भी प्रश्नकर्ता ही थे। हमारे जीवन में उत्तर नहीं था. लेकिन कदम-कदम पर हमारे प्रभु ने साथ दिया।

अगर प्रभु का अनुभव करना हो तो आहार शुद्ध करो, नप जप करो और किसी अमीर की सहायता करो। इसके बाद प्रभु से प्रार्थना है कि आप अनुभव करें कि आप कहां हैं और कैसे हैं? ये बुद्धि के द्वारा नहीं समजा जा सकता. जब आपको अनुभव होगा तो आप यही समझेंगे।

कोई एक मालिक है

अरबों लोग अरबों में हैं और सभी अलग-अलग पहचाने जा रहे हैं। किसी की नाक अलग, किसी के मुंह अलग. इस तरह से होते हैं सभी नाक-नक्शे अलग. एक अरब 35 करोड़ तो केवल भारत में है। लेकिन फिर भी सभी अलग-अलग पहचाने जा रहे हैं। यही कृति की अद्भुत रचना है. पशु-पक्षी सबका भरण-पोषण हो रहा है। जैसे राष्ट्र है तो राष्ट्रपति है. इसी प्रकार ब्रह्माण्ड है तो ब्रह्माण्ड का कर्ता भी है। लेकिन लोग ऐसे राष्ट्रपति के बारे में नहीं जानते जो पढ़ रहे हैं या समाचार आदि नहीं देख रहे हैं। ठीक इसी तरह जो साधना नहीं करता वो ईश्वर को कैसे जान लेगा।

साधना से जान पाओगे प्रभु को

भगवान कोई अप्राकृतिक प्राकृतिक वस्तु नहीं है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में साक्षात् बुद्धि है और उस बुद्धि का विधान करने वाले ब्रह्मा हैं और ब्रह्मा को जो बुद्धि देते हैं वो प्रभु हैं। जब ब्रह्मा जी कमल प्रकट हुए तो उनके मन में प्रश्न आया कि मुझे कौन उत्पन्न करने वाला है। इस प्रश्न के उत्तर के लिए वे सौ दिव्य वर्षों तक कमल नाल मंदी से नीचे उतरते रहें। लेकिन उनका पता नहीं चला. इसके बाद फिर वो ऊपर गए और एटेंरिक भाव से कॉला पर गए, जहां से मैं उनके अनुभव कक्ष में गया। तब शब्द ‘त’ ‘प’ प्रकट हुआ। इसके बाद ब्रह्मा जी ने तपस्या में लीन मंत्र का जाप किया और वे प्रकट हुए, भगवान के नाभि कमल से मैं प्रकट हुआ और भगवान प्रकट हुए।

अंत में प्रेमानंद जी कहते हैं

‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देख तिन तैसी’। किसी ने निराकार देखा, किसी ने साकार देखा, किसी ने सर्वगुण देखा, किसी ने सर्वगुण देखा। हम क्या देखते हैं स्त्री और पुरुष, दुष्ट, दुराचारी और महात्मा। इसलिए हमें दिखाई दे रहा है और दूसरा कोई नहीं। प्रेमानन्द जी महाराज कहते हैं-परमात्मा हर जगह है। एक भी ऐसा नहीं है जहाँ मेरा परमात्मा नहीं है। लेकिन उसके अनुभव के लिए हमारी दृष्टि का परिवर्तन करना होगा।

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अस्वीकरण: यहां संस्थागत सूचनाएं सिर्फ और सिर्फ दस्तावेजों पर आधारित हैं। यहां यह जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह के सिद्धांत, जानकारी की पुष्टि नहीं होती है। किसी भी जानकारी या सिद्धांत को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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Umesh Solanki

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