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गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
– फोटो : अमर उजाला

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अमित शाह और जेपी नड्डा ने जयपुर में दो दिन कैंप कर पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की और उन  सभी मुद्दों को बारीकी से समझा जिनका असर चुनाव पर पड़ सकता है। इस पूरी कवायद का परिणाम यह हुआ है कि वसुंधरा राजे सिंधिया को बहुत स्पष्ट ढंग से यह बता दिया गया है कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव में उतरेगी और किसी स्थानीय नेता को चेहरा नहीं बनाया जाएगा। पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा और उन्हीं के नाम पर वोट मांगा जाएगा। 

छत्तीसगढ़ में पहले ही पार्टी के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जिसके चेहरे पर चुनाव लड़ा जा सके। इसे पार्टी की रणनीति कहें या मजबूरी, यहां भी मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का निर्णय किया गया है। मध्य प्रदेश में भी पार्टी अभी तक यह कहने का जोखिम नहीं उठा सकी है कि चुनाव के बाद उसकी ओर से मुख्यमंत्री कौन होगा। यानी यहां भी मोदी के चेहरे पर ही वोट मांगा जाएगा। 

मोदी के चेहरे पर ऐसा दांव क्यों?

बड़ा प्रश्न यही है कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा तो इन चुनावों में हार-जीत की जिम्मेदारी किसकी होगी? यदि जीत हुई तब तो सब कुछ ठीक रहेगा, लेकिन यदि हार हुई तो इसका मोदी की छवि पर क्या असर पड़ेगा? इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।



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Umesh Solanki

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