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गहलोत सरकार ने किया नए जिले बनाने का एलान
– फोटो : अमर उजाला

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इस साल के अंत तक राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। पीएम नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि गहलोत सरकार ने राजस्थान को बर्बाद कर दिया, पार्टी में फूट पड़ गई। लेकिन गहलोत, मोदी को कोसते हुए केंद्र की योजनाओं को धता बताते हैं और स्टेट लेवल पर उसे री-लांच करते हैं। सीएम अशोक गहलोत ने शुक्रवार (छह अक्तूबर) को एक घोषणा की, जिसके बाद राजस्थान को अब तीन और नए जिले मिल जाएंगे।  सुजानगढ़, मालपुरा और कूचामन, वो भी चुनाव की तारीख के एलान से ठीक पहले।

बताते चलें, सीएम गहलोत ने कहा कि ये फैसला उन्होंने जनता के कहने पर लिया है, जिसमें उच्च स्तरीय समिति की राय भी शामिल थी। इससे पहले अगस्त में सीएम गहलोत ने रामलुभाया कमेटी की रिपोर्ट के बाद 19 नए जिलों की घोषणा की थी और अब अगर गौर करें तो राजस्थान के नक्शे में 50 जिले शामिल हो गए हैं। अब सवाल ये है कि ये जो तीन नए जिले बनाए जाएंगे, उसमें राजस्थान का कौन सा इलाका आता है और वो इलेक्टोरली गहलोत को कितना फायदा दे पाएगा।

भारत में आजादी के बाद से अलग राज्य बनाने की मांग होती रही है। कई सरकारों ने नए राज्य भी बनाए हैं। लेकिन पिछले तीन महीनों में चुनावी राज्यों खासकर मध्यप्रदेश और राजस्थान में नए जिले बनाने की मांग तेज हो गई है। राजनीतिक दलों के साथ सामाजिक संगठन और आम लोग नए जिलों की मांग में कर रहे हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों जगहों पर आम लोग भी नए जिले की मांग कर रहे हैं। राजस्थान में भी कमोबेश यही हाल है।

सरकार क्यों नहीं बनाना चाहती नए जिले

किसी भी राज्य में नया जिला बनाने से सरकारें बचती हैं। क्योंकि सरकार नया जिला बनाने के लिए जनसंख्या घनत्व को आधार मानती हैं। नए लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र भी इसी आधार पर बनाए जाते हैं। राज्य सरकार को नया जिला बनाने पर बड़ा खर्चा उठाना पड़ता है। इससे विपक्षी दलों को फायदा मिलता है। लेकिन अबकी बार सरकारें खुद नए जिले को बनाकर विकास का वादा करती हैं और चुनाव में इसका लाभ लेना चाहती हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान में कुछ ऐसा ही दिख रहा है।

नए जिलों में विकास की स्थिति

प्रशासन और तंत्र को समझने वाले लोगों का कहना है, छोटे जिले बनने पर विकास की राह बड़े जिले के मुकाबले आसान हो जाती हैं। क्योंकि छोटे जिलों में गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलीवरी से लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है। शहरों के साथ ही गांवों और कस्बों की दूरी जिला मुख्यालय से कम हो जाती है। इससे जनता और प्रशासन के बीच संवाद बढ़ता है।

वहीं, सरकारी मशीनरी के काम करने की रफ्तार बढ़ जाती है। विकास की रफ्तार तेज होने के साथ ही छोटे जिलों में कानून-व्यवस्था नियंत्रण रखती है। शहरों, कस्बों और गांवों के बीच कनेक्टिवटी बढ़ने से सरकारी योजनाएं आम लोगों तक जल्दी व आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं।

आर्थिक मदद मिलती है नए जिलों को

सरकार में बैठे अर्थशास्त्रियों का मानना है, नए जिलों का विकास करने के लिए उनको विशेष आर्थिक पैकेज देने की जरूरत होती है। नए जिले बनाने पर नए कॉलेज और अस्पताल खुलवाने का काम के साथ ही अन्य संसाधनों का विकास किया जाता है। अगर आम लोगों को नए जिले बनने से होने वाले फायदों की बात करें तो इससे उनकी सभी मुख्यालयों तक पहुंच आसान हो जाती है। वहीं, सड़क, बिजली, पानी जैसी जरूरी सुविधाओं में जिले के छोटे होने के कारण सुधार देखने के लिए मिलता है।

क्या नुकसान होता है नए जिलों से

नए जिले बनाने पर एक तरह से सरकार को नुकसान होता है। गांव से लेकर राजधानी दिल्ली तक के सभी दस्तावेजों को अपडेट करना होता है। सीमांकन करना होता है। इसके साथ ही प्रसाशनिक अधिकारी और कार्यालयों की व्यवस्था करना होता है। इसके अलावा जैसे सरकारी भवनों में नया जिला का नाम के साथ तहसील आदि लिखने में पेंट आदि में खर्च आता है।

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Umesh Solanki

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