देश के 222 साल पुराने ‘आयुध कारखाने’, जो अब सात कंपनियों में तब्दील हो चुके हैं, दोबारा से चर्चा में हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने आयुध कारखानों की मौजूदा स्थिति को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है। श्रीकुमार का कहना है कि आयुध कारखानों को नष्ट करने की साजिश रची जा रही है। देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पांच पूर्व रक्षा मंत्रियों की सलाह को दरकिनार कर सरकार ने इन कारखानों को निजी कंपनियों में तब्दील कर दिया था। श्रीकुमार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को इस बात से अवगत कराया है कि सेना, निजी क्षेत्र को खुलेआम ऑर्डर दे रही है और कई आयुध कारखानों की ऑर्डर बुक लगभग शून्य होती जा रही है। केंद्र में विभिन्न दलों की सरकारों में रक्षा मंत्री का पद संभालने वाले पांच नेता भी आयुध कारखानों के निजीकरण के पक्ष में नहीं थे।
बतौर श्रीकुमार, इंटक फेडरेशन ने पूर्व में निगमीकरण का समर्थन किया था और सरकार से कर्मचारियों को 7 कंपनियों में शामिल होने के लिए पैकेज की मांग की थी। हालांकि, अब वामपंथी ट्रेड यूनियनों के साथ इंटक सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने भी संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इनका कहना है कि 41 आयुध कारखानों के निगमीकरण का फैसला, ठीक नहीं था। इंटक के रुख में अचानक आए बदलाव पर श्रीकुमार ने कहा, रक्षा कर्मचारियों की ट्रेड यूनियनों का अग्रणी महासंघ एआईडीईएफ हमेशा से ही आयुध कारखानों के निगमीकरण का विरोध कर रहा है। सरकार का यह कदम, आयुध कारखानों को नष्ट कर देगा। चूंकि ये कारखानें, देश की रक्षा तैयारियों से जुड़े हैं, इसलिए राष्ट्र को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक, निगमीकरण वापस नहीं ले लिया जाता। डीआरडीओ, आयुध कारखानों और अन्य रक्षा उद्योग को नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। एटक, एचएमएस, सीटू, एलपीएफ और अन्य वामपंथी संगठन शुरू से ही इस संघर्ष का पूरा समर्थन कर रहे हैं। प्रारंभ में इंटक निगमीकरण के पक्ष में थी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ हुई बैठक में उन्होंने सरकार के फैसले का समर्थन किया था। अब, अन्य 9 सीटीयूओ के साथ, इंटक ने भी संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें सरकार से ओएफबी के निगमीकरण को वापस लेने का आग्रह किया गया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पहले भी पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया कि निगमीकरण एक असफल प्रयोग है। निगमीकरण के बाद आयुध निर्माणियों को पर्याप्त काम नहीं दिया जा रहा। पांच निगमों के कर्मचारियों को पहले की तुलना में कम बोनस मिल रहा है। सशस्त्र बल, आयुध कारखानों को नजरअंदाज कर निजी क्षेत्र को ऑर्डर दे रहे हैं। इन कारखानों के कर्मचारियों की मानी गई प्रतिनियुक्ति अवधि को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। निगम, अपनी खराब वित्तीय स्थिति के कारण मानव संसाधन नीतियां बनाने में सक्षम नहीं हैं। महासंघों ने निगमीकरण को वापस लेने और इस बीच सात डीपीएसयू में 70000 कर्मचारियों को उनकी सेवा से सेवानिवृत्ति तक केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के रूप में बनाए रखने के लिए एक अधिसूचना प्रकाशित करने की मांग की है। ये कारखाने, रक्षा उद्योग के आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निजी कॉरपोरेट्स के दबाव में सरकार द्वारा नियुक्त कई समितियों ने आयुध कारखानों का निगमीकरण करने की सिफारिश की है।
पांच रक्षा मंत्रियों ने कहा, निजीकरण नहीं होगा
बतौर श्रीकुमार, पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस, जसवंत सिंह, प्रणब मुखर्जी, एके एंटनी और मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि आयुध निर्माणियों का निजीकरण नहीं होगा। ये कारखाने पहले की भांति सेना को हथियार, गोला बारूद एवं दूसरा साजो सामान सप्लाई करते रहेंगे। रक्षा मंत्रियों का लिखित भरोसा हमारे पास है। ऐसे मिनट्स हैं, जिनमें साफ लिखा है कि ये कारखाने प्राइवेट नहीं होंगे। सप्लाई ऑर्डर पहले इन्हीं कारखानों को मिलेगा। ट्रेड यूनियनों को लिखित आश्वासन दिया गया कि आयुध कारखानों का निगमीकरण नहीं किया जाएगा। वर्तमान सरकार ने कोविड-19 महामारी का लाभ उठाते हुए, परामर्श शुल्क के रूप में 6 करोड़ रुपये का भुगतान करके केपीएमजी एडवाइजरी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को एकतरफा नियुक्त किया था। केपीएमजी की सिफारिशों के आधार पर कैबिनेट ने निगमीकरण का गलत निर्णय लिया। ट्रेड यूनियनों के पूरे कार्यबल के विरोध के बावजूद आयुध कारखानों को 7 गैर-व्यवहार्य निगमों में विभाजित कर दिया गया। 70,000 से अधिक कर्मचारी, जो सभी केंद्र सरकार के कर्मचारी/रक्षा नागरिक कर्मचारी हैं, उन्हें सात निगमों में डीम्ड प्रतिनियुक्ति पर एकतरफा तैनात किया गया। अब निगमीकरण के दो वर्षों के भीतर ही यह स्पष्ट हो गया कि आयुध कारखानों का निगमीकरण सरकार का एक असफल प्रयोग है। सशस्त्र बल, इन निगमों को काम देकर निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
काम नहीं होने से कारखाने बेकार पड़े हैं
मौजूदा समय में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि 50 फीसदी से अधिक आयुध कारखाने, काम नहीं होने के कारण बेकार पड़े हैं। कंपनियों को कर्मचारियों के मासिक वेतन का भुगतान करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। सशस्त्र बल, निजी क्षेत्र को सस्ती दरों पर ऑर्डर दे रहे हैं। सशस्त्र बलों को खराब गुणवत्ता और निम्न मानक उपकरणों की आपूर्ति होने लगी है। मृत कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा आधार पर नियुक्ति भी नहीं दी जाती है। निगमों को संभालने की सरकार की प्रतिबद्धता झूठा आश्वासन बनकर रह गई है। आयुध कारखानों को 7 गैर-व्यवहार्य निगमों में विभाजित करना एक असफल निर्णय है। बतौर श्रीकुमार, इसका एक और प्रमाण यह है कि सरकार ने स्वयं, निगमीकरण के 2 वर्षों के भीतर, 7 निगमों को घटाकर 4 निगमों में बदलने और 1 का विलय करने के लिए एक और सलाहकार एसबीआई कैप्स को नियुक्त किया है। केंद्र सरकार को आयुध निर्माणी बोर्ड के रूप में 41 भारतीय आयुध कारखानों की स्थिति को बहाल करना चाहिए। सरकार को निगमीकरण से पहले और निगमीकरण के बाद आयुध कारखानों में कार्यभार की स्थिति के बारे में एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।
ठीक नहीं डीआरडीओ के प्रति सरकार का नजरिया …
41 आयुध कारखानों के कंपनी में तब्दील होने के बाद अब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भी ‘निजीकरण’ की राह पर जा सकता है। ‘एआईडीईएफ’ के महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, केंद्र सरकार की ऐसी मंशा दिखाई पड़ रही है कि आयुध कारखानों के ‘निगमीकरण’ और ईएमई में ‘जीओसीओ’ मॉडल लाने के बाद अब ‘डीआरडीओ’ पर नजर है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की लैब को पहले ही निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है। हमारे देश के लोगों के पैसे से स्थापित की गई लैब की तमाम सुविधाओं का इस्तेमाल, प्राइवेट क्षेत्र करने लगा है। सरकार ने पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय कमेटी गठित की है। इस कमेटी को डीआरडीओ की कायापलट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसरो और एटोमिक एनर्जी की तरह नए लेबर कोड प्रभावी होने के बाद डीआरडीओ को भी इंडस्ट्री की परिभाषा से छूट प्रदान कर दी जाएगी। के. विजय राघवन की अध्यक्षता में जो 9 सदस्यीय कमेटी गठित की गई है, वह प्रधानमंत्री के निर्देश पर काम करती है। इस कमेटी को जो जिम्मेदारी दी गई है, उसमें रक्षा विभाग (आरएंडडी) एवं डीआरडीओ का पुनर्गठन और भूमिका को फिर से परिभाषित करना, शामिल है। इसके अलावा इनका आपसी और शैक्षणिक समुदाय व इंडस्ट्री के साथ संबंध तय किया जाएगा। शैक्षणिक समुदाय, एमएसएमई और कटिंग एज टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में स्टार्टअप की सहभागिता निर्धारित होगी।