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दिल्ली एनसीआर गैस चैंबर बन चुका है. जैसे ही आप अपने घर से बाहर निकलेंगे आपको आसमान में छाया प्रदूषण (Delhi Air Pollution) साफ-साफ दिख जाएगा. आज स्थिति ये है कि दिल्ली के आनंद विहार इलाके में सुबह 10 बजे हवा की गुणवत्ता यानी एक्यूआई 740 दर्ज की गई. ये आंकड़ा साल के उच्चतम स्तर पर है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर दिल्ली एनसीआर के साथ ही ऐसा क्यों होता है. दरअसल, इस मौसम में हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने के कारण दिल्ली एनसीआर की हालत खराब हो जाती है. यहां हर तरफ धुंआ ही धुंआ रहता है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर ये पराली का धुंआ दिल्ली एनसीआर में आकर रुक क्यों जाता है?

दिल्ली के प्रदूषण के पीछे आपकी गाड़ी

दिल्ली में प्रदूषण के पीछे कई कारण हैं. इसके पीछे सिर्फ पराली को दोष नहीं दिया जा सकता. दरअसल, दिल्ली एनसीआर के इलाके में इतनी ज्यादा प्राइवेट गाड़ियां हैं कि शाम को अगर आप बाहर निकल जाएं तो आपको हर तरफ ट्रैफिक जाम ही नजर आएगा. इनमें से ज्यादा गाड़ियां डीजल और पेट्रोल से चलती हैं और इनसे निकलने वाला धुंआ धीरे धीरे दिल्ली वालों का गाल घोंट रहा है.

दिल्ली में आकर क्यों रुक जाता है प्रदूषण

ये सवाल हर दिल्ली वासी के दिल में है कि ऐसा क्यों होता है कि इस मौसम में सारा प्रदूषण दिल्ली में ही आके रुक जाता है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं. इसमें से पहला और बड़ा कारण है हवा का ना चलना. दरअसल, इस वक्त दिल्ली में हवाएं तेज नहीं चल रही हैं और वातावरण में वाष्प मौजूद है जिसकी वजह से हरियाणा और पंजाब से आया पराली का धुंआ दिल्ली की हवा में ही रुक जा रहा है. इसक अलावा इस बार अक्टूबर में बारिश ना के बराबर हुई, इसकी वजह से भी दिल्ली में जो स्थिति दिवाली के बाद बनती थी वो अभी से बनी हुई है.

अरावली की पहाड़ियां थीं रक्षक

एक वक्त था जब दिल्ली की हिफाजत अरावली की पहाड़ियां करती थीं. लेकिन अब इसे धीरे धीरे लगभग खत्म कर दिया गया है. यहां लगातार पेड़ काटे गए. इसका परिणाम ये है कि अब दिल्ली को प्राकृतिक रूप से सुरक्षा देने वाली अरावली इसकी हिफाजत नहीं कर पा रही है. दरअसल, पहले जब यहां ढेर सारे पेड़ थे तब बाहर का प्रदूषण दिल्ली में प्रवेश नहीं कर पाता था. इसके साथ ही यहां से चलने वाली हवाएं दिल्ली के प्रदूषण को बाहर धकेल दिया करती थीं. और तो और पेड़ों की वजह से बारिश भी समय पर होती रहती थी. लेकिन अब सब बंद है और दिल्ली घुट घुट कर धीरे-धीरे मर रही है.

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Umesh Solanki

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