समय समय पे हर समाज अपने समाज का अवलोकन करता आया है, और अपने आप को सुधारने का काम करता रहा है, जहाँ यहुदी सिर्फ आबादी का 1% भी नही है पर पूरी दुनिया में आर्थिक, सामाजिक स्तर पे नंबर 1 है वही दुनिया के दूसरा सबसे बड़ा आबादी वाला क़ौम मुसलमानों की हालात बद से बदतर होता जा रहा है,
दिल्ली के 150 शुलभ शौचालयों में तकरीबन 1325 सफाई कर्मचारी हैं। इनमे से आधे से अधिक मुस्लिम वर्ग के हैं.
दिल्ली और मुंबई के 50% रिक्शा चालक मुसलमान हैं। इनमें से अधिकतर नाई, जुलाहे, पठान, सिद्दीकी, शेख़ यानी पूर्वांचल और बिहार के मुसलमान हैं।
पूर्वी भारत में मुसलमानो की स्तिथि अछूत सी है कुछ जगहों पर। बाकी जगहों पर लोगों के घरों में काम करने वाले 70% बावर्ची और नौकर मुसलमान हैं।
मुसलमानो में प्रति व्यक्ति आय दलितों से भी कम हैं। यहां और अधिक चिंता का विषय यह है कि 1991 की जनगणना के बाद से दलितों की प्रति व्यक्ति आय सुधर रही है लगातार वहीं मुसलामानो की और कम हो रही है।
मुसलमान भारत का दूसरा सबसे बड़ा कृषक समुदाय है। पर इनके पास मौजूद खेती के साधन अभी 40 वर्ष पीछे हैं। इसका कारण मुसलमान होने की वजह से इन किसानों को सरकार से उचित मुआवजा, लोन और बाकी रियायतें न मिलना रहा है। अधिकतर मुसलमान किसान कम आय की वजह से जमीन बेचने को मजबूर हैं।
मुसलमान छात्रों में “ड्रॉप आउट” यानी पढ़ाई अधूरी छोड़ने की दर अब भारत में सबसे अधिक है। वर्ष 2001 में मुसलमानों ने इस मामले में दलितों को पीछे छोड़ दिया और तब से टॉप पर कब्जा किये बैठे हैं।
मुसलमानों में बेरोजगारी की दर भी सबसे अधिक है। समय पर नौकरी/रोजगार न मिल पाने की वजह से 14% मुसलमानों हर दशक में विवाह सुख से वंचित रह रहे हैं। यह दर भारत के किसी एक समुदाय में सबसे अधिक है। यह मुसलमानों की आबादी लगातार गिरने का बहुत बड़ा कारण है।
आंध्र प्रदेश में बड़ी संख्या में मुसलमानों परिवार 500 रुपये प्रति महीने और तमिलनाडु में 300 रुपए प्रति महीने पर जीवन यापन कर रहे हैं। इसका कारण बेरोजगारी और गरीबी है। इनके घरों में भुखमरी से मौतें अब आम बात है।
भारत में ईसाई समुदाय की प्रति व्यक्ति आय तकरीबन 1600 रुपए, sc/st की 800 रुपए, ओ॰बी॰सी॰ की 750 के आस पास है। पर मुसलमानों में यह आंकड़ा सिर्फ़ 537 रुपये है और यह लगातार गिर रहा है।
मुसलमानों युवकों के पास रोजगार की कमी, प्रॉपर्टी की कमी के कारण सबसे अधिक मुसलमानों लड़कियों लव जिहाद का शिकार हो रहीं हैं।
उपरोक्त आकंड़े बता रहे हैं कि मुसलमानों कुछ दशकों में वैसे ही खत्म हो जाऐंगे। जो बचे खुचे रहेंगे उन्हें वह जहर खत्म कर देगा जो सोशल मीडिया पर दिन रात मुसलमानों के खिलाफ गलत लिखकर नई पीढ़ी का ब्रेनवाश करके उनके मन में मुसलमानों के प्रति अंध नफरत से पैदा किया जा रहा है। महाशय हम कहाँ जा रहे हैं,ध्यान देना होगा हमे अपने भविष्य पर।
: मुसलमानों से सात यक्ष प्रश्न
1-मुसलमान एक कैसे होंगे और कब होंगे?
2- मुसलमान एक दूसरे की सहायता कब करेंगे?
3-मुसलमान संगठनों में एकता कैसे होगी?
4-मुसलमान अपना वोट एक जगह कब देंगे?
5- मुसलमान अपनी अपनी जातियों का गुणगान कब बंद करेंगे?
6-उच्च पदों पर बैठे अफसर, मुसलमान मंत्री, mp, MLA अपने निहित स्वार्थ से ऊपर उठ कर मुसलमानों की बिना शर्त सहायता कब करेंगे?
7-गरीब मुसलमानों की सहायता करने के लिए मुसलमान महाकोष का गठन कब होगा?
भारत मे 30 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम आबादी है
हर महीने एक मुसलमान 10 र₹ भी महाकोष में जमा करेगा तब भी हर महीने 300 करोड़ जमा होंगे
और उसमे से हर ग़रीब मुस्लिम को स्वयंरोजगार मुहैया कराया जा सकता है
गरीब मुस्लिमो की बच्चे बच्चीयों का निकाह कराया जा सकता है
मुस्लिमों के लिए फ्री स्कूले कॉलेज खोले जा सकते हैं
इसका उत्तर एक कट्टर मुसलमान चिंतक प्राप्त करना चाहता है l