रविंद्र नाथ टैगोर ये नाम दिमाग में आते ही उनकी कुछ अदभुत किताब नोवेल और कहानिया गीतांजलि, चोखर बाली गोरा जैसा कृति के अदभुत ज़िंदगी के ताना बाना घूमने लगता है, पर जब कल उनके ही द्वारा लिखी नोवेल नाशटनिड का हिंदी रूपांतरण नाटक चारुलता देखा तो सोचने पर मजबूर हो गया, रूपांतरकार श्याम किशोर का तार्किक बुद्धि और मनोविज्ञानीक सोच को सलाम जो उन्होंने अपनी अदभुत कल्पना शक्ति से इस नाटक के मानवीय रिश्ते को सीग्मन फ्राइड के थ्योरी को मद्दे नज़र रखते हुए भारतीय सभ्यता व संस्कार को ले कर चले और आख़िर में मानवीय संवेदना को बड़ी चालाकी से छु कर समाज के संस्कार और समाजिकरण जीत दिला दी, अभिनय के दृष्टि कोन से सभी कलाकार ने अच्छा काम किया, मुख्य रूप से चारुलता के रूप में अजूना सारस्वत ने, अमल के चरित्र में श्याम किशोर अदभुत और जे. एन. यू और अलीगढ़ जैसे बड़े छात्र और बुद्धिजीवी कवि दिखे जब वो अंग्रेज़ी में भाषण देते है और फिर हिंदी भाषा के गद्ध और पद्ध दोनों विधाओ को बड़ी बारीकी से बंगाली टोन लेकर बोलते है तो एक सधा हुआ अभिनेता लगते हैं, संजय ने बड़े भाई व एक संस्कारी पति की भूमिका को पूर्ण रूप से साकार किया वही मंदा ने अपने चरित्र को अपनी आवाज़ के उतार चढ़ाओ के साथ आंगिक अभिनय से अपनी मांसिक और शारीरिक रूप से अपनी बदमाशी और चालाकी को दर्शाने मे सफल रही, मंच सज्जा और प्रकाश व्यवस्था ठीक ठाक था, हाँ बीच बीच में मार्मिक और मधुर संगीत इस नाटक के परिदृश्य में चार चाँद लगा देता है, निर्देशक ने अपना काम बा खूबी किया है और उनकी अदभुत कल्पना शक्ति, शिक्षा और रंग मंच की सूझ बुझ उनकी निर्देशन में साफ साफ दिखता है, इस मौक़े पे राष्ट्रीय नाट्य विधालय के शिक्षा सुरेश भारद्वाज़, इरफान जामियावाला, आसीमा भट्ट, अतीत, राजीव और लगभग 300 लोग मौजूद थे कुल मिलाकर एक सफल प्रस्तुति थी आगे में सभी कलाकारों के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करता हूँ.. 🙏🙏
रिव्यू: मोहम्मद इरफान