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वट सावित्री व्रत 2023 पूजा: अखंड भक्ति के लिए वट सावित्री व्रत 19 मई 2023 को रखा जाएगा। इस दिन सुहागिनें सोलह वक्र कर पति की लंबी आयु और सुखी गृहस्थी के लिए सूर्योदय से फलाहार या निर्जल व्रत कर वट वृक्षारोपण की पूजा और परिक्रमा करती है।
मान्यता है कि वट सावित्री व्रत में बरगद की पूजा, दान करने से यमराज और त्रिदेव व्रती को सुहावती रहने का वरदान देते हैं। महिला पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भी ये व्रत करती हैं। ज्येष्ठ अमावस्या पर यूपी, बिहार, झारखंड, दिल्ली, राजस्थान सहित उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत चलाया जाता है। आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की पूजा मुहूर्त, विधि, मंत्र और कथा।
वट सावित्री व्रत 2023 मुहूर्त (वट सावित्री व्रत 2023 मुहूर्त)
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ – 18 मई 2023, रात्रि 09.42
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि समाप्त – 19 मई 2023, रात 09.22
- चर – सामान्य – 05:28 से 07:11
- लाभ – विकास – 07:11 से 08:53
- शुभ- उत्तम – 12:18 से 14:00
वट सावित्री व्रत पूजा विधि (वट सावित्री व्रत पूजा विधि)
- वट सावित्री व्रत के दिन स्वरवती महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट वृक्ष और यमदेव की पूजा करती हैं। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें।
- वट सावित्री व्रत के एक दिन पहले काले चने पानी में दबा कर रखें। इस पूजा में भीगे हुए निश्चित रूप से व्यक्त किए जाते हैं, क्योंकि यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को दिए थे।
- अब सोलह वक्र कर वट वृक्ष के नीचे एक बांस की डोकिंग में सप्तधान लें और दूसरी डोकिंग में सावित्री और सत्यवान की तस्वीर लें। आप चाहे तो मानसिक रूप से भी उनकी पूजा कर सकते हैं।
- वट वृक्ष को जल और सर्वे दूध से सींचे। ब्रह्मणा सहिंतां देवीं सावित्रीं लोकमातरम्। सत्यव्रतं च सावित्रीं यमं चावाहयाम्यहम्।। इस मंत्र का जाप करते हुए देवी सावित्री और त्रिदेव का आवाहन करें।
- कुमकुम, हल्दी, अक्षरत, सिंदूर भीगे चने, फल, मीठा, लाल वस्त्र निप्पल और धूप में घी का दीप हरिद्रकुडकुमं चैव सिंदूरं कज्जलान्वितम्। स्वरद्रव्यसंयुक्तं सावित्री प्रतिगृहताम्।। इस मंत्र का जाप करें।
- अब चार्ट सूत या रक्षा सूत्र वट वक्ष के तने पर लिपटे हुए 108 बार परिक्रमा करें। 7 या 11 परिक्रमा भी कर सकते हैं। वट सावित्री व्रत की कथा का श्रावण करें.
- अब 11 सुहागिनों को सुहाग की सामग्री और फल का दान करें।
वट सावित्री व्रत का नियम (वट सावित्री व्रत नियम)
- वट सावित्री व्रत सुहाग को समर्पित है, इसलिए इस दिन पति-पत्नी एक दूसरे से वाद विवाद न करें। इसी व्रत का फल नहीं मिलता है।
- वट सावित्री व्रत की पूजा का फल तभी मिलता है जब व्रती तन-मन से शुद्धि होती है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- किसी भी महिला, बुजुर्ग, गरीब के प्रति मन में गलत विचार न देखें। दूसरों के साथ न चलें।
- भूलकर भी व्रती काले, नीले या सफेद रंग के कपड़े न पहने। लाल, पीले हरे रंग के परिधान धारण करें।
- वट सावित्री व्रत का पारण पूजा में उपयोग किए भीगे चने या वट वृक्ष की कोपल खाकर ही करें। व्रत वाले दिन भूल से भी तामसिक भोजन ग्रहण न करें।
वट सावित्री व्रत कथा (वट सावित्री व्रत कथा)
मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था, उनकी संतति नहीं थी, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई। जिसका नाम सावित्री पड़ा। विवाह योग्य होने पर सावित्री ने सत्यवान को पतिरूप में वरण किया। विवाह के बाद पता चला कि सत्यवान अल्पायु है और एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी लेकिन सावित्री अपने दांपत्य जीवन को लेकर अडिग रही।
सावित्री की गोद में ही त्यागे सत्यवान ने प्राण
नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री सत्यवान के साथ वन को छोड़ दिया गया वन में सत्यवान जैसे ही काठ काटने वाले पेड़ पर चढ़ा तो उनके सिर में दर्द होने लगा। वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर बैठ गई। थोड़ी देर बाद सावित्री के विशिष्ट यमराज दूतों के साथ रुके थे। यमराज सत्यवान के प्राण को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री को पीछे आते देख यमराज ने कहा, ‘हे पतिव्रता नारी जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, कर अपने पति के साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ लेकिन सावित्री ने कहा कि जहां मेरे प्राणप्रिय होंगे मैं उनके साथ जाउंगी
वट वृक्ष के नीचे मिला जीवनदान
सावित्री के पति के प्रति निष्ठा देखकर यमराज प्रसन्न हुए और उन्होंने सावित्री को एक बार गलत मानने के लिए कहा। तब सावित्री ने वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। यमराज ने तथास्तु कहा। सावित्री ने कहा कि पति के बिना पुत्रों का आशीर्वाद कैसे संभव है तब यमराज ने वट वृक्ष के नीचे सत्यवान की जीवात्मा को मुक्त कर दिया। यम के आशीर्वाद से सत्यवान: पुन: जीवित हो गए और सावित्री के सौ पुत्रों की कामना भी पूरी हुई।
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