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Ordnance Factories
– फोटो : Amar Ujala/Sonu Kumar

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देश के 222 साल पुराने ‘आयुध कारखाने’, जो अब सात कंपनियों में तब्दील हो चुके हैं, दोबारा से चर्चा में हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने आयुध कारखानों की मौजूदा स्थिति को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है। श्रीकुमार का कहना है कि आयुध कारखानों को नष्ट करने की साजिश रची जा रही है। देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पांच पूर्व रक्षा मंत्रियों की सलाह को दरकिनार कर सरकार ने इन कारखानों को निजी कंपनियों में तब्दील कर दिया था। श्रीकुमार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को इस बात से अवगत कराया है कि सेना, निजी क्षेत्र को खुलेआम ऑर्डर दे रही है और कई आयुध कारखानों की ऑर्डर बुक लगभग शून्य होती जा रही है। केंद्र में विभिन्न दलों की सरकारों में रक्षा मंत्री का पद संभालने वाले पांच नेता भी आयुध कारखानों के निजीकरण के पक्ष में नहीं थे।

आयुध कारखानों के निगमीकरण का फैसला गलत 

बतौर श्रीकुमार, इंटक फेडरेशन ने पूर्व में निगमीकरण का समर्थन किया था और सरकार से कर्मचारियों को 7 कंपनियों में शामिल होने के लिए पैकेज की मांग की थी। हालांकि, अब वामपंथी ट्रेड यूनियनों के साथ इंटक सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने भी संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इनका कहना है कि 41 आयुध कारखानों के निगमीकरण का फैसला, ठीक नहीं था। इंटक के रुख में अचानक आए बदलाव पर श्रीकुमार ने कहा, रक्षा कर्मचारियों की ट्रेड यूनियनों का अग्रणी महासंघ एआईडीईएफ हमेशा से ही आयुध कारखानों के निगमीकरण का विरोध कर रहा है। सरकार का यह कदम, आयुध कारखानों को नष्ट कर देगा। चूंकि ये कारखानें, देश की रक्षा तैयारियों से जुड़े हैं, इसलिए राष्ट्र को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक, निगमीकरण वापस नहीं ले लिया जाता। डीआरडीओ, आयुध कारखानों और अन्य रक्षा उद्योग को नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। एटक, एचएमएस, सीटू, एलपीएफ और अन्य वामपंथी संगठन शुरू से ही इस संघर्ष का पूरा समर्थन कर रहे हैं। प्रारंभ में इंटक निगमीकरण के पक्ष में थी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ हुई बैठक में उन्होंने सरकार के फैसले का समर्थन किया था। अब, अन्य 9 सीटीयूओ के साथ, इंटक ने भी संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें सरकार से ओएफबी के निगमीकरण को वापस लेने का आग्रह किया गया है।

निगमीकरण को बताया एक असफल प्रयोग 

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पहले भी पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया कि निगमीकरण एक असफल प्रयोग है। निगमीकरण के बाद आयुध निर्माणियों को पर्याप्त काम नहीं दिया जा रहा। पांच निगमों के कर्मचारियों को पहले की तुलना में कम बोनस मिल रहा है। सशस्त्र बल, आयुध कारखानों को नजरअंदाज कर निजी क्षेत्र को ऑर्डर दे रहे हैं। इन कारखानों के कर्मचारियों की मानी गई प्रतिनियुक्ति अवधि को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। निगम, अपनी खराब वित्तीय स्थिति के कारण मानव संसाधन नीतियां बनाने में सक्षम नहीं हैं। महासंघों ने निगमीकरण को वापस लेने और इस बीच सात डीपीएसयू में 70000 कर्मचारियों को उनकी सेवा से सेवानिवृत्ति तक केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के रूप में बनाए रखने के लिए एक अधिसूचना प्रकाशित करने की मांग की है। ये कारखाने, रक्षा उद्योग के आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निजी कॉरपोरेट्स के दबाव में सरकार द्वारा नियुक्त कई समितियों ने आयुध कारखानों का निगमीकरण करने की सिफारिश की है।



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Umesh Solanki

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