करवाचौथ का पावन त्यौहार शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता है। अखंड सौभाग्य के वरदान की लालसा और निशाकर का इंतज़ार प्रेम की असीम भावना को प्रदर्शित करता है। भावनाओं और संवेदनाओं से ही इंसान जीवंत है। कितना अनूठा एहसास है की कोई आपके प्रेम में क्षुधा और प्यास सब भूल बैठा। आपकी मंगलकामना ही उसके लिए सर्वोपरि है। प्रेम की महत्ता तो स्वयं ईश्वर ने व्यक्त की है। राधा-कृष्ण रूप, सती-शिव रूप और सीता-राम के रूप में। प्रत्येक प्रेम में प्रभु ने उत्कृष्टता सिद्ध की है। प्रेम और उम्र और बंधन से पूर्णतः मुक्त है। सोलह श्रृंगार की लावण्यता को परिपूर्णता प्रेम ही प्रदान करता है। पति के प्रेम के कारण ही तो मुख पर अनूठी चमक-दमक सुशोभित होती है। प्रेम के कारण ही तो भावनाओं का प्रवाह विद्यमान है। प्यार की बहार, मंद बयार, फूलों का खिलना, चाँदनी रातें, गुनगुनाती बातें; यह सभी उपमाएँ संवेदनाओं और भावनाओं की उड़ान है।
निशाकर का इंतज़ार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
परिणीता का श्रृंगार, तेरे प्रति मेरा प्यार।।
व्योम का निहार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
कुमुदकला का निखार, तेरे प्रति मेरा प्यार।।
पति-पत्नी के रिश्ते का सौन्दर्य प्रेम और समर्पण ही है। इस रिश्ते में हृदय में पूर्ण साम्राज्य सिर्फ एक-दूसरे का होता है। मुस्कुराहट रूपी कुसुम जब पति-पत्नी के वन-उपवन में पल्लवित होता है तो फिर जीवन में किसी औषधि की आवश्यकता नहीं होती। प्रेम शब्द नहीं एक एहसास है। प्रेम की उत्कृष्टता तो सदैव एक-दूसरे की खुशी में निहित होती है। पति-पत्नी के रिश्ते का सौन्दर्य सहजता, सरलता, अपनत्व और मन की खूबसूरती से सुशोभित होता है। इस रिश्ते की महिमा अत्यंत विलक्षण है। नारी श्रृंगार से अंगार पर चलने तक का सफर सिर्फ अपने जीवनसाथी को मस्तिष्क में रखकर तय करती है। वह अपने पति को सर्वस्व मानती है।
प्रभा का आधार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
दीर्घायु कीचाह, तेरे प्रति मेरा प्यार।।
सुह्रद का स्वरुप, तेरे प्रति मेरा प्यार।
क्षुधा की पुकार, तेरे प्रति मेरा प्यार।।
अखंड सौभाग्य के प्रतीक इस त्यौहार में नारी के मस्तक पर शोभित बिंदी मुखमंडल की शोभा बढ़ाती है। जुड़ा, गजरा, चूड़ी सभी अलंकार से वह अपने आप को सुशोभित करती है। सोलह श्रृंगार से उत्साह और उमंग के नवीन पुष्प हृदय में पल्लवित होते है। श्रृंगार की मनमोहिनी छवि से वह अपने आप को संवारती है। प्रेम ही जीवन में सौन्दर्य को प्रकाशित करता है। नारी चाहती है कि उसके पति उसकी खामोशी, अल्हड़पन, जिद, हँसना, रोना, हर मनोभाव को समझे और प्रत्येक परिस्थिति में वह उसके प्रेम को ही सर्वोपरि ही माने।
सलिल का पान, तेरे प्रति मेरा प्यार।
अर्क का पर्याय, तेरे प्रति मेरा प्यार।।
सौभाग्य का सूत्रधार, तेरे प्रति मेरा प्यार।
अपनत्व का उपहार, तेरे प्रति मेरा प्यार।।
जीवन को सादगी से परिपूर्ण एवं प्रेम की भावनाओं से श्रृंगारित होना चाहिए। प्रेम में निहित सहजता, गहराई एवं समर्पण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समर्पण बहुत ही किस्मत वालों को मिलता है। कभी भी बाहरी आडंबर, खोखली वेशभूषा और स्वप्न एवं कृत्रिम दुनिया के लिए अपने प्रेम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह न लगाए। करवाचौथ व्रत के प्रत्येक के विधान में प्रियतम का प्यार और उसकी दीर्घायु की चाह छुपी होती है। वृद्धावस्था में यह प्रेम दोनों की आँखों में करुणा के रूप में दिखेगा। करवाचौथ एक प्रतिबद्धता है एक-दूसरे के प्रीत की। इसे अपनत्व के उपहार से परिपूर्णता प्रदान कीजिए।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)