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महाभारत: महाभारत के शक्तिशाली और सबसे बड़े दानवीर योद्धा कर्ण को आज भी दया लोग देखते हैं। इसका कारण यह है कि, बिना युद्ध के परिणाम सोचे उन्होंने अपना कवच कुंडल दान कर दिया। राजकुमार के पास भी उसकी संपत्ति नहीं थी। जन्म से क्षत्रिय के होने के बावजूद भी वह नाव सवार के घर पले-बढ़ें। इस कारण उनका एक नाम सुत पुत्र भी पेड है। कर्ण की कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं है, बल्कि कर्ण के उदाहरण अंत के किस्से और भी हैं। आइये जानते हैं कर्ण को मिले वो तीन श्राप, जो उनके लिए प्राणघाती सिद्ध हुए।
बता दें कि कर्ण कुंती को सूर्य से भूषण मिले पुत्र थे। कर्ण का जन्म तभी हुआ था जब कुंती ने उसे गंगा में बहा दिया था, क्योंकि कुंती ब्रह्मलीन थी। इसके बाद कर्ण ने एक नाव चालक के रूप में अपनी पत्नी राधा संग को अपना भरण-पोषण दिया। कर्ण में गुण तो क्षत्रिय का था मगर राजकुल में ना रहने के कारण उन्हें पांडवों के साथ रणकौशल सीखने का मौका नहीं मिला। इसके बाद कर्ण ने खुद को एक ब्राह्मण परशुराम से शिक्षा ली।
परशुराम से मिला कर्ण को पहला श्राप
शिक्षा समाप्त होने के बाद एक दिन परशुराम के साथ कर्ण वन में घूमते रहे। परशुराम थक गये तो कर्ण ने कहा, गुरुजी आप मेरे भगवान में सिर झुकायें। इसके कुछ देर बाद वहां एक बिच्छू आया और उसने कर्ण की टांग पर डंक मार दिया। लेकिन कर्ण बिल्कुल भी हिले नहीं, क्योंकि कर्ण के हिलने से परशुराम की नींद टूट जाती है। लेकिन परशुराम को सब मना कर दिया। इस घटना से उन्हें यह समझ आया कि, कर्ण कोई साधारण मनुष्य तो नहीं हो सकता। उन्होंने अपनी पहचान पूछी। इस पर कर्ण ने भी बिना छुपे हुए परशुराम को बताया सच।
लेकिन सत्य ज्ञान से क्रोधित हो गये। उन्होंने डंक सीखी विद्या के कारण कर्ण को श्राप दे दिया कि समय आने पर वो अपनी सारी विद्या भूल जाएंगे। यह कर्ण को पहला श्राप मिला था।
धरती मां से मिला कर्ण को दूसरा श्राप
इसके बाद कर्ण को धरती माँ से भी श्राप मिला। एक बार कर्ण किसी काम से बाहर थे, उसी रास्ते में उन्हें एक छोटी सी लड़की मिली जो लगातार रो रही थी। कर्ण ने रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि, मेरा सारा दूध गिर गया है। अब मैं घर कैसे जाऊंगी. मुझे बहुत से दस्तावेज़. इस पर कर्ण को मरना पड़ा और अपनी शक्ति से धरती का सीना चित्रित कर वो सारा दूध निकाल दिया। धरती मां को ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि समय पर आकर वो साथ चले गए।
कर्ण को मिला तीसरा श्राप
तीसरा श्राप कर्ण को तब मिला, जब उन्होंने अपना अस्त्र गलत तरीके से चलाया। हुआ यूं कि एक दिन कर्ण वन में रणकौशल का अभ्यास कर रहे थे। उन्हें लगा कि पेड़ों के पीछे कोई जंगली जानवर है और वह चला गया। लेकिन पास ही किसी ने देखा तो वो एक ब्राह्मण की गाय थी। ब्राह्मण के पास और कुछ नहीं था और अपने प्रिय गाय की मृत्यु से बहुत दुःख हुआ। उसने काना को श्राप दिया कि समय आने पर तुम भी भटक जाओगे और अपनी मौत से खुद को नहीं बचा पाओगे।
तीन श्राप ने शोरूम में प्रदर्शित रंग प्रस्तुत किया
इन तीन श्रापों ने कुरूक्षेत्र की भूमि पर रंग दिखाया। खुद को बचाने के लिए उसने ब्रह्मास्त्र प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन भगवान परशुराम के श्राप के कारण वह मंत्र भूल गया। धरती माता के श्राप से लेकर कर्ण के रथ का पहिया धंसा और अंततः ब्राह्मण के श्राप का दर्शन हुआ। जब कर्ण का ध्यान अपने रथ के पहिये से हटा दिया गया तभी उनका अंत कर दिया गया। इस प्रकार कर्ण को मिले ये तीन श्राप उसके लिए प्राणघाती सिद्ध हुए।
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