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सावन 2023: इस बार विक्रम संवत 2080 में दो सावन मास हैं। इस साल सावन के 59 दिनों में 8 सोमवार व्रत, दो कृष्ण पक्ष, दो शुक्ल पक्ष, एक सोम प्रदोष, दो पुष्य नक्षत्र, तीन अमृत सिद्धि योग, तीन तिथियां क्षय, शनि वक्री पड़ेंगे।
सावन की शुरुआत 4 जुलाई से होगी और 31 अगस्त को ख़त्म होगी. इस साल सावन 59 दिनों का होगा, जिसमें कई शुभ योग भी मिलेंगे। अधिक मास के कारण सावन में 8 सोमवार का व्रत भी रखा जाता है, जिसमें भक्ति, श्रद्धा, भक्ति के भाव से देवाधिदेव शिव को सरलता से मनाया जा सकता है। क्योंकि सभी मासों में सावन शिवजी अत्यंत प्रिय हैं। इसलिए कहा गया है कि – ‘शिवप्रिय सावन-शिव मन भावन’।
सभी देवों में श्रेष्ठ, परम पूज्य देवाधिदेव-महादेव अर्थात शिव। फिर सभी बारह मासों में सबसे प्रिय ‘सावन’ जिसमें वह ऋतु विशेष, भाव विशेष अतिप्रफुल्लित-प्रसन्न होते हैं। जैसे भक्तिभाव, श्रद्धा, विनय, अभिषेक, वन्दना आदि द्वारा सरलता से उनकी प्रार्थना प्राप्त की जा सकती है।
सुयोग समझिए या अन्य कोई योग लेकिन शिव की पूजा, आदि के लिए सूर्य प्रधान उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में मंगलवार 4 जुलाई, प्रथम सावन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से गुरुवार 31 अगस्त, द्वितीय सावन शुक्ल की खंडित पूर्णिमा तक दो सावन और 8 सोमवार .
सावन की शुरुआत में कई शुभ योग
सावन के शुभ योग 4 जुलाई को बुधादित्य योग, वाशि योग, सुनफा योग, इंद्र योग जैसे शुभ योगों का संयोग बन रहा है। इससे पहले ऐसा ही संयोग साल 2004 में बना था और अब 2023 में भी ऐसा ही संयोग बना है.
अधिकमास क्या है
भारतीय श्रुति-स्मृति-पुराणदी के, 32 माह 16 दिन, 4 घड़ी के अंत से अधिक मास आता है। इसी प्रकार क्षय मास, मलमास, पुरूषोत्तम मास, लोक व्यवहार में अधिकमास के ये नाम काफी प्रभावशाली हैं। यह जाने कि जिस माह में सूर्य संक्रांति होती है वह माह अधिकमास होता है और जिसमें दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मास माना जाता है। यह कार्तिकादि तीन माह में होता है। इसी प्रकार प्रत्येक सौर वर्ष 365 दिन, 6 घंटे का होता है जबकि चन्द्र वर्ष 354 दिन का होता है। इनमें 11 दिन का अंतर होता है। तीन साल में सौर वर्ष, चंद्र वर्ष में साम्य स्थापित करने के लिए एक चंद्र मास बढ़ाया जाता है जिसे अधिकमास या मलमास कहा जाता है।
4 जुलाई से 31 अगस्त तक सावन रहेगा, जिसमें मंगलवार 18 जुलाई से रविवार 16 अगस्त तक अधिमास अर्थात पुरूषोत्तम मास है। शास्त्रों में कहा गया है कि, पुरूषोत्तम मास में जाने वाले व्रत, दान-पुण्य से भगवान विष्णु, महादेव, सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। इस लोक में सभी सुख और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। ‘श्रीकृष्ण कहते हैं-‘यह फलदाता तथा भोक्ता मैं ही हूं।’ इसके दोनों पक्ष सावन के दो शिलालेख मध्य से जुड़े हुए हैं और इनके दोनों पक्ष सावन के दो मासों से जुड़े हुए हैं।
इसके अतिरिक्त एक योग यह भी है कि इन दोनों में शनिदेव अपने ही स्वामित्व वाली राशि कुंभ में घटित होते हैं। एक ओर वंहा शिवप्रिय है तो शिव से शनि के कई लाभ हैं, कोई द्वादश नहीं है। यदि शिव का तीसरा अवकाश स्थल से विनाशकारी विध्वंस होता है। उनकी तीसरी दृष्टि प्रलयंकारी है तो शनि को भी अशुभ दृष्टि वाला कहा गया है। साइन में ‘तीसरी दृष्टि’ एक मात्र शनिदेव के पास है। शिव परम ज्ञान स्वरूप हैं तो शनि आत्मज्ञान के कारक हैं। दोनों ही योग, तप, मुक्ति की ओर ले जाते हैं।
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