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प्रयागराज समाचार: उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश) में गंगा नदी (गंगा नदी) में प्रदूषण से जुड़े अवशेषों की सुविधा अब इलिनोइस हाईकोर्ट (इलाहाबाद उच्च न्यायालय) के बजाय नेशनल ट्रिब्यूनल ग्रीनल (एनजीटी) में होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 18 प्राचीन से चल रहे साथियों को रिलीज कर उन्हें एनजीटी में पोस्ट कर दिया है। अब एनजीटी ही दर्शन पर सभी दो देनदारियों से अधिक आवेदन। यह निर्णय गंगा से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही अलैंगल हाईकोर्ट के लार्जर बेंच ने स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी (स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी) की अंतिम याचिका (पीआईएल) पर दो सर्वसम्मति से बड़ी याचिकाएं दाखिल की हैं। पूरी समीक्षा के बाद कुछ दिन पहले ही कोर्ट ने अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था।
वकील है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट वर्ष 2006 से इस मामले में नियमित रूप से सुनवाई कर रहा है। गंगा प्रदूषण को लेकर सबसे पहली फाइल टीकारामफी आश्रम के महंत स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने की थी। इसके बाद इस नामांकन पत्र से दो सिक्कों से अधिक दूसरी अर्ज़ियां भी शामिल हो गईं। उच्च न्यायालय इस मामले में नियमित रूप से सुनवाई करते हुए कॉन्स्टिस्ट अभ्यर्थियों और सरकार को निर्देश दे रहा था। उच्च न्यायालय के अवशेषों में गंगा की स्थिति में काफी हद तक सुधार भी हुआ था।
उच्च न्यायालय ने गंगा नदी से जुड़े सभी सहयोगियों को एनजीटी में स्थान दिया
यूपी सरकार ने पिछले दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट में सभी सहयोगियों को एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पदस्थापित करने की अपील की थी। आरोप लगाया जा रहा है कि यूपी सरकार के कर्मचारी एनजीटी में केस दर्ज कराने के लिए बेघर हो गए हैं। उच्च न्यायालय में आज के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर, न्यायमूर्ति एम गुप्ता और न्यायमूर्ति दिवा अजित कुमार की लार्जर बेंच ने अपना निर्णय लिया और सभी साथियों को एनजीटी में पदस्थापित करने का आदेश दिया।
एनजीटी को ऐसे मामलों की सुनवाई का अधिकार-उच्च न्यायालय
हाई कोर्ट की लार्जर बेंच ने अपने जजमेंट में कहा है कि एनजीटी को भी इस तरह के मामले सुनने का अधिकार है। यूपी सरकार की ओर से जो डॉक्टर दिए गए और नजीर पेश किए गए, उन्हें बर्खास्त नहीं किया जा सकता। हालांकि कई कलाकारों ने इस पर एतराज के जज और सुप्रीम कोर्ट के जज को चुनौती देने की बात कही है।
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