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मध्य प्रदेश में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में अपनी जीत दर्ज करने और जनता के दिलों में जगह बनाने के लिए सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.
इस वायरल तस्वीर में उनके पूरे कपाल पर चंदन का लेप लगा हुआ है. तस्वीर में कमलनाथ कंधे पर लाल गमछा डाले हाथ जोड़कर खड़े हैं. यह तस्वीर चर्चा में इसलिए भी है क्योंकि हाल ही में उनका हिंदुत्व को लेकर एक ऐसा बयान सामने आया था जिसने मध्यप्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी थी.
दरअसल कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ छिंदवाड़ा में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के कार्यक्रम और कथा में पहुंचे थे. कथा के दौरान कमलनाथ ने कहा था कि वे हनुमान भक्त हैं और उन्हें हिंदू होने पर गर्व भी है. कथा के बाद हुए प्रेस कांफ्रेंस में कमलनाथ ने कहा था कि भारत की 82 फ़ीसदी जनता हिंदू है तो ये कोई कहने की बात नहीं है, ये हिंदू राष्ट्र तो है ही.
हालांकि कमलनाथ ने अपने इस बयान को पूरी तरह निजी बयान बताया है लेकिन विपक्ष का नया गठबंधन ‘इंडिया’ इससे खुश नजर नहीं आ रहा था. सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी कि चुनाव जीतने के लिए कमलनाथ धीरे-धीरे हार्ड हिंदुत्व का चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि तमाम आलोचनाओं के बीच भी कांग्रेस हिंदुत्व का कार्ड खेलने का रिस्क क्यों ले रही है..
अपनी पार्टी के नेता भी हैं नाराज
दरअसल मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीज कुरैशी का कहना है कि कांग्रेस नेता वोट मांगने के लिए हिंदुत्व की माला जप रहे हैं. इस तरह के नेताओं को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस सहित सभी पार्टियां अच्छी तरह समझ लें कि मुसलमान आपका गुलाम नहीं है कि जो कुछ कह देंगे, उसका पालन हो जाएगा.
हार्ड हिंदुत्व की छवि से कमलनाथ को फायदा होगा या नुकसान?
इस सवाल का जवाब बीबीसी की एक रिपोर्ट में मध्य प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष साजिद अली ने देते हुए कहा कि पूर्व सीएम कमलनाथ को इस तरह विवादित बयानबाजी से बचना चाहिए. अगर उन्हें ऐसा लग रहा है कि वह इस चुनाव में हिन्दुत्व के मोर्चे पर भारतीय जनता पार्टी को सॉफ़्ट हिन्दुत्व से हरा पाएंगे तो ये उनकी गलतफहमी है.
साजिद अली आगे कहते हैं, ‘कांग्रेस को सेक्युलर राजनीति करने के लिए ही जाना जाता रहा है और बीजेपी को हिंदुत्व की राजनीति. ऐसे में मुझे नहीं लगता है कि कांग्रेस में धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए कोई जगह है.”
साजिद आगे कहते हैं, ”पिछले कुछ दिनों से कमलनाथ जिस तरह का बयान दे रहे हैं या उनकी जिस तरह की तस्वीर वायरल हुई है, जनता उनसे ज्यादा सवाल तो दिग्विजय सिंह से करने लगेगी. दरअसल दिग्विजय सिंह ने पिछले कुछ दिनों से कमलनाथ का खुलकर समर्थन किया है लेकिन मुझे नहीं लगता कि हिंदुत्व के मुद्दे और उनके इस तरह के बयानों पर दिग्विजय सिंह भी साथ देंगे.”
साजिद कहते हैं कि “मुझे लगता है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सेक्युलर नेता हैं लेकिन लोकप्रियता के लिए वह भी भटकते दिख रहे हैं. इसके बावजूद मैं कहूंगा कि कमलनाथ एक सेक्युलर नेता हैं.”
कांग्रेस में कब कैसे शुरू हुई सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में हार मिलने के बाद से ही लगातार कांग्रेस का प्रदर्शन खराब होता जा रहा है. पिछले 9 सालों में कांग्रेस लगभग 40 विधानसभा चुनाव और 2 लोकसभा चुनाव में हार का स्वाद चख चुकी है. यही कारण है कि कांग्रेस इन विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति बदलने में लगी है. इसी बदलती हुई राजनीति के तहत कांग्रेस कभी सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते जाती है, तो कभी संविधान और सेक्युलरिज्म के रास्ते.
कांग्रेस में कमलनाथ पहले ऐसे नेता नहीं है जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की तरह ही हिंदुत्व की राजनीति कर आगे बढ़ने की कोशिश की हो. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने ‘तपस्वी’ रूप धारण किया था. इस दौरान उनसे किए गए सवालों के जवाब सुनकर भी इस बात की चर्चा तेज होने लगी था कि क्या राहुल इस पूरे यात्रा में दर्शन और सिद्धांत की ही बात करेंगे या राजनीति भी करेंगे.
कांग्रेस के रणनीतिकार आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं?
साल 2014 के आम चुनाव में हार मिलने के बाद सोनिया गांधी ने एके एंटोनी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी. इस कमेटी कांग्रेस के हारने का मुख्य कारण उनके मुस्लिम तुष्टीकरण और चुनाव में संगठन के नदारद रहने को बताया.
इस रिपोर्ट के बाद साल 2017 में गुजरात चुनाव हुए. उस वक्त कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते आगे भी बढ़ी, लेकिन इसका उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ था.
अपने बयानों के खिलाफ जाकर कांग्रेस कर पाएगी हिंदुत्व की राजनीति
अगर कांग्रेस हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर चुनाव में आगे बढ़ती है तो उसे अपने ही पुराने बयानों के खिलाफ जाना होगा. उदाहरण के तौर पर जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था उस वक्त राहुल गांधी और कांग्रेस के कई नेताओं ने बयान दिया था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो 370 लागू करेंगे.
इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी देश में समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है, भारतीय जनता पार्टी ने तीन तलाक को भी कानूनी खत्म कर दिया. उस वक्त भी कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी के इस कदम का विरोधी किया था. सवाल इस बात का है जब पीएम मोदी इन मुद्दों पर चुनावी मंच से सवाल दागेंगे तो कांग्रेस उस क्या जवाब देगी?
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