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Supreme Court On  Marathi Signboard Rule: दुकानों के साइनबोर्ड में मराठी में नाम और ब्यौरा लिखने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मुंबई के खुदरा व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट ने नसीहत दी. कोर्ट ने कहा कि जब मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है और बहुत से लोग मराठी में लिखी बात को सहजता से पढ़ पाते हैं तो दुकानदारों को नाम मराठी में भी लिखने के नियम का विरोध नहीं करना चाहिए. आप वकीलों पर पैसे खर्च करने की बजाय मराठी में लिखा छोटा सा बोर्ड लगाने पर विचार कीजिए.

जस्टिस बी वी नागरत्ना और उज्ज्वल भुईयां की बेंच ने मुंबई के ‘फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स एसोसिएशन’ की याचिका को सुनते हुए यह कहा, “हालांकि, यह सिर्फ एक टिप्पणी है, कोई अंतिम आदेश नहीं.”  इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जवाब देने का समय देते हुए सुनवाई 4 हफ्ते के लिए टाल दी.

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका 
याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. पिछले साल 23 फरवरी को दिए आदेश में हाई कोर्ट ने ‘महाराष्ट्र शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट रूल्स’ के नियम 35 में हुए बदलाव को सही ठहराया था. याचिका में कहा गया है कि ‘महाराष्ट्र शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट रूल्स’ मुख्य रूप से कर्मचारियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से जुड़ा कानून है. इसके तहत राज्य सरकार ने नई व्यवस्था बना दी है. इस व्यवस्था में उन छोटी दुकानों को भी शामिल कर लिया गया है, जिनमें 10 से भी कम कर्मचारी हैं.

भावनात्मक रवैया न अपनाएं
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में रिटेल व्यापारियों के संगठन की अपील पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था. नवंबर में दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि फिलहाल मराठी में साइनबोर्ड न लगाने वाले दुकानदारों के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की जाए. आज हुई सुनवाई में जजों ने व्यापारियों को सलाह दी कि वह इसे अहम का मसला न बनाएं और भावनात्मक रवैया अपनाने की बजाय व्यवहारिक बनें.

मराठी में लिखने से क्या समस्या है?
कोर्ट ने यह भी कहा कि मराठी संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत आधिकारिक भाषा का दर्जा रखती है. कोर्ट ने कहा, “जब हिंदी या अंग्रेजी में आपको नाम लिखने से नहीं रोका जा रहा तो मराठी में भी लिखने में क्या समस्या है? मुकदमे पर पैसा खर्च करने के बजाय एक छोटा सा बोर्ड लगाने पर विचार कीजिए. हमें ऐसा नहीं लगता कि राज्य सरकार के इस नियम से व्यवसाय का आपका मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है.”

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, ‘अमान्य शादी से पैदा संतान को भी मिल सकता है माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा’

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Umesh Solanki

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