
मध्य प्रदेश कटनी: —- कर्बला की यादेँ हसनैन करीमैन मुहर्रम समाजिक एकता सौहार्द का प्रतीक है – तनवीर खान
– पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत का मातमी पर्व मोहर्रम इस बार मंगलवार 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन दोपहर 3 बजे शहर और आसपास के क्षेत्रों से ताजियां एवं सवारियां अपने-अपने इमामबाड़ों से उठकर ईश्वरीपुरा वार्ड स्थित दिलावर चौक मैदान में एकत्रित होंगे! और यहां कुछ देर रूकने के बाद मोहर्रम का जुलूस प्रारंभ हेागा।

पिछले दो सालों से कोरोना संक्रंमण के चलते मातमी पर्व मोहर्रम पर कोई भी आयोजन नहीं हो पा रहा था, लेकिन इस बार प्रतिबंधों में छूट मिलने के बाद कटनी शहर में मातमी पर्व मोहर्रम का पर्व सादगी और संजीदगी के साथ मुहर्रम पर्व का आयोजन किया जा रहा है। पर्व की तैयारियां तेज कर दी गई है। खास बात यह है कि इस बार मोहर्रम इंतजामिया कमेटी के साथ ही शहर की कई अन्य छोटी-बड़ी कमेटियां पर्व को सफलतापूर्वक आयोजित करने में अपना हर संभव सहयेाग प्रदान कर रही हैं।
पर्व को लेकर की जा रही तैयारियोंं की जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से एक पत्रकारवार्ता का आयोजन गत गुरूवार को मोहर्रम इंतजामिया कमेटी के कार्यालय मिशन चौक में किया गया। कमेटी के अध्यक्ष तनवीर खान तन्नू भाई ने इस मौके पर सभी पत्रकारबंधुओं को स्वागत करते हुए बताया कि इस बार का मोहर्रम शहर में एक मिसाल कायम होगी। मुस्लिम समाज के साथ ही मोहर्रम इंतजामिया कमेटी एवं सभी सामाजिक संगठन पर्व को एक नया आयाम देने में जी जान से जुटे हुए हैं। पत्रकारवार्ता में मोहर्रम इंतजामिया कमेटी के अध्यक्ष तनवीर खान तन्नू भाई, ने यह जानकारी दी!
मुहर्रम :(अरबी/उर्दू/फ़ारसी : محرم) इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना है। हिजरी वर्ष का आरंभ इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस मास में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है।मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के कौल (कथन) व अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी अहमियत का पता चलता है। ऐसे ही हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है, उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा व जिलहिज्ज।एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं। यह कहते समय नबी-ए-करीम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक बात और जोड़ी कि जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं।
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का प्रथम मास है। इत्तिफाक की बात है कि आज मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है और इस माह में अल्लाह की इबादत करनी चाहीये जबकि पैगंबरे-इस्लाम ने इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित किया। इस बारे में कई प्रामाणिक हदीसें मौजूद हैं। मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादतों का भी बड़ा सवाब बताया गया है। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है। गोया यह कि मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए। यह रोजे अनिवार्य यानी जरूरी नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत सवाब है।
अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी हजरत नूह (अ.) की किश्ती को किनारा मिला था। इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन (अलैहिस्सलाम) को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है। बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का तरीका अपनाना चाहिए।