हिन्दू धर्म पुरुष अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मर जाता है फिर पाप और पुण्य के कर्मों का साक्षी कौन होता है

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हिंदू धर्म शास्त्र: गुप्त चाणक्य की नीति के पांचवें अध्याय में कहा गया है कि- जन्ममृत्यु हि यत्येको भुणक्त्येकः शुभाशुभम्। नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्॥

जीव अकेला ही जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसाता है, अकेला ही पाप-पुण्य का फल भोगता है। अकेला ही कई प्रकार के मार्ग प्रदान करता है। अकेला ही मोक्ष को प्राप्त करता है। क्योंकि माता-पिता, भाई-बंधु, सगे-संबंधी कोई उसका दुख नहीं सह सकते हैं।

वेद-पुराणों में धर्म और अधर्म के बारे में बताया गया है। इसमें धर्म ‘पुण्य’ और अधर्म ‘पाप’ कहलाते हैं। पाप और पुण्य जैसे कर्म करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। एक आदमी अपने पूरे स्क्रीनशॉट में, एक साल, एक दिन या एक पल में भी पाप या पुण्य कर सकता है। लेकिन पाप-पुण्य का भोग सहस्त्रों वर्षों में भी पूरा नहीं होता है। यानी आपने अपने जीवन में जो भी पाप या पुण्य किए हैं, उस कर्म का फल आपको जीवित रहना या मृत्यु के बाद निश्चित रूप से भोगना पड़ता है।

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पाप-पुण्य कर्मों का साक्षी कौन?

प्राणी संसार में अकेला आता है और मृत्यु के बाद भी अकेला ही जाता है। घर-परिवार श्मशान जाने से पहले छूट मिलती है, शरीर को अग्नि जलाती है। लेकिन उसके द्वारा किए गए पाप-पुण्य कर्म साथ जाते हैं और अपने कर्मों का भोग वह अकेला ही करता है। लेकिन यह सवाल है कि अगर जानवर अकेला आता है और अकेला जाता है। या अगर कोई छिपकर बुरे कर्मों को करता है तो फिर उसका पाप-पुण्य कर्म की साक्षी अंतिम कौन है?

पाप-पुण्य कर्म के 14 साक्षी

जिस तरह सूरज की रात में नहीं रहता और चांद के दिन में नहीं रहता। अग्नि भी निरंतर जलती नहीं रहती है। लेकिन दिन, रात और मूवी में कोई एक तो है जो हर समय जरूर रहता है। संसार में भी ऐसा कुछ है, जो हमेशा प्राणी के साथ रहता है। इसलिए जब कोई व्यक्ति कोई गलत काम करता है तो धर्मदेव उसकी सूचना देते हैं और प्राणी को उसका परिणाम भी अवश्य मिलता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा जो कर्म करता है, उसके सौतेले भाई होते हैं। इनमें से कोई भी हमेशा मनुष्य के साथ नहीं रहता। मनुष्य के कर्म के 14 साक्षी इस प्रकार हैं- सूर्य, चंद्रमा, दिन, रात, ईव, जल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, काल, कोण और धर्म।

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Umesh Solanki

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