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आयुर्वेदिक चिकित्सक वाग्भट्ट ऋषि: भारतीय परंपरा में पौराणिक समय से ही ऋषि, मुनि से लेकर आम लोग स्वस्थ और निरोगी जीवन के लिए आयुर्वेद और योग पर निरंतर बने हुए हैं। आयुर्वेद का प्रसिद्ध ग्रंथ है अष्टांग संग्रह (अष्टांग संग्रह) और अष्टांग हृदयम (अष्टांग हृदयम), जिनकी रचयिता हैं वाग्भट ऋषि (वाग्भट ऋषि)।
शास्त्रों में अश्विनी कुमार, वरुण देव, दक्ष प्रजापति और धन्वंतरि को सबसे बड़ा आयुर्वेदाचार्य माना जाता है। इसके बाद चरक, च्यवन, सुश्रुत, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, दिवोदास, पांडव पुत्र नकुल-सहदेव, अर्कि, जनक, बुध, जावाल, जाजल, पाल, करथ, अगस्त्य, अथर्व, अत्री ऋषि के छह शिष्य, अग्निवेश, भेड़, जातकर्ण, पराशर, सीरपाणि, हरित, जीवक, वाग्भट्ट, नागार्जुन और पतंजलि का नाम शामिल है।
कौन हैं वाग्भट ऋषि
आयुर्वेद की दुनिया में वाग्भट ऋषि का नाम बहुत ही आदर-सम्मान के साथ लिया जाता है। आयुर्वेद में वाग्भट का स्थान भी अंश आत्रेत (आचार्य अत्रे) और सुश्रुत (सुश्रुत) के समान ही है। ये अंतिम वाग्भट हुए। यद्यपि इनका जन्म और मृत्यु की तिथि को लेकर जातियाँ हैं, लेकिन कहा जाता है कि सिंधुर नदी के तटवर्ती किसी जनपद में वाग्भट ऋषि का जन्म हुआ था। वाग्भट्ट अवलोकितेश्वर के शिष्य थे। इनके पिता का नाम सिद्ध गुप्त ब्राह्मण और दादा का नाम वाग्भट था।
वाग्भट ऋषि ने आयुर्वेद के कई ग्रंथों की रचना की। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद सभी प्रकाश में आए। इनमें से अष्टांगसंग्रह और अष्टांगहृदय को दिया गया फंड माना जाता है, जो कालाएंटक में आयुर्वेदिक चिकित्सा-शास्त्र के छात्रों द्वारा पाठ्य पुस्तकों के रूप में प्रयोग होते हैं। वाग्भट ऋषि का अष्टांग हृदयम ऐसा ग्रंथ है, जिसका अनुवाद जर्मन भाषा में भी हुआ है। अष्टांग हृदयम में कुछ 7120 श्लोक हैं, जिनमें 6 खंड और 120 अध्याय हैं।
अष्टांगहृदय (अष्टांग हृदयम)
वाग्भट ऋषि ने अष्टांग हृदयम में बीमारियों को ठीक करने के 7000 से अधिक सूत्र बताते हैं। अष्टांग हृदयम के पांच अंगों में बीमारी, कारण और उपचार का वर्णन मिलता है।
- पहले भाग में औषधी औषधियों, चिकित्सा विज्ञान के लिए विशेष निर्देश, दैनिक और प्राप्त मान्यता, प्राप्तियों की उत्पत्ति, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के गुण-दोष, रेखित खाद्य पदार्थों की पहचान और उपचार, व्यक्तिगत स्वच्छता, औषधियां और उनके लाभों का विवरण मिलता है है।
- दूसरे भाग में मानव शरीर की रचना, विभिन्न अंग, मनुष्य की प्रकृति, मनुष्य के विभिन्न रूप और आचरण आदि का वर्णन किया गया है।
- तीसरे भाग में बुखार, ग्रहण, उल्टी, दमा, चर्म-रोग जैसे टिप्पणियों के उपचार के बारे में बताया गया है।
- चौथे भाग में वमन और स्वच्छता के बारे में बताया गया है।
- पांचवें यानी अंतिम भाग में शिशु स्पर्श, मधुपान, आंख, कान, नाक, मुख आदि के रोग, घाव के उपचार, विभिन्न पशुओं और कीड़ों के काटने के उपचार का वर्णन किया गया है।
हार्ट अटैक से कैसे बचें
बात करें हार्ट अटैक (हार्ट अटैक) की तो नियमित आर्ट अटैक या हृदयघात के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। 40-50 की उम्र में ही धोखा दे रहा है। वाग्भट ऋषि ने अपने ग्रंथ अष्टांग हृदयम में रोकने के लिए 7000 से अधिक सूत्र बताते हैं, जिसमें हार्ट अटैक भी एक है। वाग्भट ऋषि के अनुसार, हृदय की नलिकाएं अवरुद्ध होने के बाद हार्ट अटैक होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रक्त में अम्लता बढ़ जाती है। यहां एसिडिटी का अर्थ पेट की एसिडिटी से नहीं है। इस एसिडिटी का अर्थ रक्त में बढ़ रही एसिडिटी से है, जिसे हाईपर एसिडिटी भी कहते हैं।
जब रक्त में एसिड बढ़ने लगता है तो रक्त दिल की धड़कन से निकल नहीं पाता है और एक बार ऐसा आता है कि नलियों को ब्लॉक कर देते हैं, जिससे दिल का दौरा पड़ता है। अगर आपके खून में एसिडिटी बढ़ जाती है तो ऐसे में दागी चीजों का झांसा देना चाहिए। विज्ञान के साथ ही आयुर्वेद में भी बताया गया है कि जब एसिड में रसायन मिला दिया जाता है तो स्थिति सामान्य हो जाती है। ठीक इसी तरह से ब्लड में एसिडिटी सामान्य हो जाएगी तो हार्ट अटैक की कभी संभावना नहीं होगी।
कड़वी बातें क्या हैं: वाग्भट अपने ग्रंथों में रक्त में अम्लता की मात्रा को कम करने के लिए लौकी (दूधिया) को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। लौकी के साथ ही अदरक, अंगूर, खजूर, दूध, संतरा, अंशदाता, अंकांकित अनाज, चुकंदर, गोभी, गाजर, प्याज, मूली, खीरा, टमाटर, पालक, कद्दू, परवल आदि जैसी बातें भयानक हैं।
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