मरने से पहले रावण उपदेश लक्ष्मण को रावण ने दी थी ये पांच सलाह एस्ट्रो स्पेशल

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रावण उपदेश: भले ही एक राक्षस कुल का राजा था। लेकिन जैसा उसकी दुनिया में दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि रावण सिर्फ एक है। लंकाधिपति दशानन महाराज रावण अत्यंत ही बलशाली, महापराक्रमी योद्धा, परम शिव भक्त, वेदों का ज्ञाता और महापंडित था।

रावण की विशेषताएं

जैन शास्त्र में रावण को प्रति-नारायण माना जाता है। यही कारण है कि जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण का नाम भी शामिल है। रावण ब्रह्मा ज्ञानी और बहु-विद्याओं का ज्ञान था। उन्होंने कई तरह के तंत्र, सम्मोहन, इंद्रजाल और जादू किया था। रावण के पास ऐसा विमान भी था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इसलिए जब रावण मृत्युशैया पर पड़ा होता है तब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण को रावण ने राजनीति और शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं।

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राम ने लक्ष्मण को रावण से शिक्षा लेने को क्यों कहा

जब राम और रावण के बीच युद्ध हुआ तो रावण की हार हुई। रावण मरणासन्न राज्य में था। तब भगवान राम से लक्ष्मण को रावण ने शिक्षा लेने को कहा। क्योंकि राम भी जानते थे कि रावण इस संसार की नीति, राजनीति और शक्ति के महान पंडित थे। इसलिए राम ने लक्ष्मण से कहा कि तुम रावण के पास जाओ को उससे जीवन से जुड़ी ऐसी शिक्षाएं प्राप्त करो, जो परमेश्वर और कोई नहीं दे सकता है। भगवान राम की बात सुनकर लक्ष्मण की मृत्युशैया पर पड़े रावण के सिर के पास खड़े हो गए।

लेकिन लक्ष्मण के काफी देर तक रुकने पर भी रावण ने कुछ नहीं कहा। लक्ष्मण राम के पास वापस आ गए और कहा कि प्रभु! मैं बहुत देर तक रावण के पास खड़ा रहा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। तब भगवान राम कहते हैं कि किसी से ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनका सिर नहीं बल्कि सीढ़ियों के पास ऊंचा होना चाहिए। इसके बाद लक्ष्मण फिर से रावण के स्टैज के पास जाकर खड़े हो गए और रावण ने मरने से पहले लक्ष्मण को जो बातें बताईं, वह आज भी हर किसी को जाननी चाहिए।

रावण ने मरने से पहले क्या कहा?

  • रावण लक्ष्मण को ज्ञान देते हुए कहते हैं कि किसी भी शुभ या अच्छे काम में देरी नहीं करनी चाहिए। उसी समय अशुभ काम के लिए ज्यादा से ज्यादा मोहवश करना उसे ज्यादा टालने का प्रयास करना चाहिए।
  • अपनी शक्ति और पराक्रम में इतना घमंड नहीं करना चाहिए या इतना अधिक अंग नहीं होना चाहिए कि शत्रु पकड़ने लगें। मुझे ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि मानव और वानर के अलावा कोई मुझे नहीं मार पाएगा। लेकिन इसके बावजूद मैंने हाथ पकड़ लिया और यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी, जिस कारण आज मैं मरणासन्न अवस्था में पड़ा हूं।
  • रावण का तीसरा उपदेश था कि, उसके शत्रु और मित्र के बीच पहचान करने की समझ होनी चाहिए। कई बार हम शत्रु को अपना मित्र समझते हैं, जोकि बाद में हमारे शत्रु सिद्ध होते हैं। वहीं जिसे हम शत्रु समझकर पराया करते हैं वही हमारे वास्तविक मित्र होते हैं।
  • रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान देते हुए कहा कि अपने जीवन के गूढ़ता के बारे में किसी को भी नहीं बताना चाहिए। फिर चाहे वह आपका कितना भी सागा क्यों न हो। क्योंकि विभीषण जब लंका में था तब वह मेरा शुभेच्छु था और जब वह राम की शरण में गया तो मेरा विनाश हो गया।
  • रावण का आखिरी उपदेश था कि किसी भी पराई स्त्री पर बुरी नजर नहीं रखनी चाहिए। क्योंकि जो व्यक्ति स्त्री पर बुरी नजर रखता है, वह नष्ट हो जाता है।

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Umesh Solanki

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