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बाबा दीप सिंह: बाबा दीप सिंह सिखों के ऐसे योद्धा थे असली नाम आज भी शूरवीरों की सूची में सबसे ऊपर आता है। बाबा दीप सिंह की बहादुरी के किस्से सुनकर आप भी उनके सामने नतमस्तक हो जाएंगे। बाबा दीप सिंह पंजाब की धरती के ऐसे योद्धा थे जो युद्ध भूमि से दुश्मन का सिर काटने के बाद उनके सिर के आवास पर रखते थे।
बाबा दीप सिंह का जन्म सन् 1682 में अमृतसर के गांव बहुत पिंड में हुआ था। 12 साल की उम्र में बाबा दीप सिंह जी अपने माता-पिता के साथ आनंदपुर साहिब गए। वहां बाबा दीप सिंह की मुलाकात सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी से हुई। बाबा दीप सिंह जी ने वहां रुक कर सेवा की और गुरु गोविंद सिंह जी के कहने पर उनके माता-पिता उन्हें छोड़ कर चले गए।
आनंदपुर साहिब में बाबा दीप सिंह ने अपने जीवन की शिक्षा प्राप्त की भाषाएं सीखी, घुड़सवारी सीखी, शिकार और धीमी की जानकारी ली. 18 साल की उम्र में अमृत छका और सिखों को सुरक्षित रखने की शपथ ली।
एक बार युद्ध के चलते सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब की जिम्मेदारी बाबा दीप सिंह को सौंपी। बाबा दीप सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की पांच प्रतियाँ बनाईं और ये प्रतिया अकाल तख्ता साहिब, श्री तख्ता हुजूर साहिब, श्री तख्ता जामपुर साहिब भेजी गई।
बाबा दीप सिंह ने सिख धर्म की रक्षा के लिए अपना शीशा गिरा दिया। मुगल शासकों से लड़ते हुए उनके शीशे अलग हो गए और उन्हें सिख धर्म की रक्षा याद आई और उनका शरीर खड़ा हो गया, उन्होंने खुद को अपना सिर लिया श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर की परिक्रमा की और वहीं अपने प्राण त्याग दिए। उनकी ये कुर्बानी आज भी सिख धर्म के लिए एक उदाहरण है।
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