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हृदय स्वास्थ्य जोखिम: स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ दिल (हार्ट) एक बहुत बड़ी जरूरत है लेकिन कोरोना काल के बाद कमजोर दिल लोगों की सेहत के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। ब्लड वेसल्स में होने वाले अटैक हार्ट अटैक (हार्ट अटैक) के कारण होते हैं और इसे बनने में देर नहीं लगती है। कोरोना महामारी ने दिल के निवासियों की संख्या में काफी अधिक कर दिया है। पहले सिर्फ ज्यादा उम्र के लोग दिल के दौरे की जद में आते थे लेकिन अब कम उम्र के फिट लोग भी हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं।
विशेषज्ञ विशेषज्ञ कहते हैं कि दिल का दौरा यानी हार्ट अटैक के दौरान सही समय पर सीपीआर लेने और सही उपचार होने पर रोगी की जान बचाई जा सकती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इलाज के बाद दिल का मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। दिल के दौरे से बचने और सही इलाज के बावजूद शरीर पूरी तरह स्वस्थ नहीं होता। हार्ट अटैक के इलाज के बाद कई दिनों तक मरीज के शरीर में कई तरह की जटिलताएं होती हैं इसलिए डील करना काफी मुश्किल होता है।
कमजोर हो सकते हैं दिल की मांसपेशियां
हार्ट अटैक से ठीक होने के काफी समय बाद तक मरीज के दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। मांसपेशियों में पोषण की कमी और रक्त आपूर्ति में परेशानी के कारण दिल की धड़कन काफी समय तक फिब रहती है। ऐसे में दिल की मांसपेशियां भी काफी कमज़ोरी के कारण हमेशा जलन की जड़ में रहती हैं।
मेंटल हेल्थ पर भी असर करता है
दिल का दौरा पड़ने के बाद रोगी की मानसिक स्वास्थ्य पर भी विशेष असर पड़ता है। स्वस्थ जानकारों ने इसे ब्रेन एजिंग का नाम दिया है। हार्ट अटैक के बाद मरीज के दिमाग की उम्र बढ़ जाती है और इसके बारे में सोचना, फोकस करना और याद करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है।
लंबे समय तक जीने की संभावना पर असर पड़ता है
हार्ट अटैक के बाद मरीज की जिंदगी कम हो जाती है और लाइफ एक्सपेक्टेंसी करीब दस प्रतिशत घट जाती है। यानी स्वस्थ रहने पर अगर कोई व्यक्ति 90 साल की जिंदगी जीत लेता है तो हार्ट अटैक के बाद उसके जीने के सालों में दस फीसदी कमी आ जाती है। हालांकि ऐसा केवल दिल के दौरे के कारण ही नहीं होता है, अन्य कई सारे स्वास्थ्य संबंधी कारक इसमें भूमिका निभाते हैं।
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