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आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2023: आषाढ़ मास में आयोजित गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 19 जून 2023 को होगी और इसका समापन 27 जून 2023 को होगा। गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना करने वाले विशेष रूप से 10 महाविद्याओं या महादेवियों की पूजा सिद्धि प्राप्त करने के लिए गुप्त रूप से करते हैं।
गुप्त नवरात्रि की पूजा गुप्त रूप से की जाती है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। कहा जाता है कि दस महाविद्याओं में संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्तियों का स्रोत और अनगिनत शक्तियां बताई गई हैं। इतना ही नहीं शिव भी इस शक्ति के बिना शव के समान हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 10 महाविद्याओं की उत्पत्ति आख़िर कैसे हुई।
कैसे हुई 10 महाविद्या की उत्पत्ति
देवी भागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति का कारण भगवान शिव और उनकी पत्नी सती के बीच विवाद है। पौराणिक कथा के अनुसार, एकबार दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में सभी देवता और ऋषि-मुनियों की पहचान हुई। लेकिन महादेव और सती को आमंत्रित नहीं किया गया। लेकिन सती पिता के इस यज्ञ में जाने के लिए महादेव से जिद्द करें। लेकिन महादेव नहीं चाहते थे कि, सती बिना उपदेश के वहां जाएं, जिससे कि उनका अपमान हो जाए। इसलिए महादेव ने सती की बातें अनसुना कर दिया।
इस पर सती क्रोधित हो गईं और उन्होंने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया, जिसे देखकर भगवान शिव की लीलाओं का मंचन हुआ। पति को डरा हुआ देख सती उन्हें रोक लायी। भगवान शिव जिस दिशा में भागते हैं, उस दिशा में मां का एक और विग्रह उनके दर्शन के लिए आता है। इस तरह से दसों दिशाओं में मां ने दस रुपये ले लिए। मां सती के सिद्धांत 10 सिद्धांतों को दस महाविद्या कहा जाता है। इसके बाद भगवान शिव ने सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। लेकिन यज्ञ में जाने के बाद सती का उनके पिता दक्ष प्रजापति के साथ विवाद हो गया। दक्ष प्रजापति ने शिव की निंदा की थी. अपने पति का अपमान सती से नहीं हुआ और उसने यज्ञ के कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी।
10 महाविद्या की 10 दिशाएँ
- भगवती काली – उत्तर दिशा
- तारा देवी – उत्तर दिशा
- श्री विद्या (षोडशी-त्रिपुर सुंदरी) – ईशान दिशा
- देवी भुवनी – पश्चिम दिशा
- श्री त्रिपुर भैरवी – दक्षिण दिशा
- माता छिन्नमस्ता – पूर्व दिशा
- भगवती देवी – पूर्व दिशा
- माता बगला (बगलामुखी) – दक्षिण दिशा
- भगवती मातंगी – वैधव्य दिशा
- माता श्री कमला – नैऋत्य दिशा
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